गोवर्धन पर्वत के विषय में सभी जानते है की जब इन्द्रदेव ने अहंकार के वशीभूत होकर गांव को बाड़ में डुबोने के लिए अतिवृष्टि की थी तब भगवान् कृष्ण ने अपनी छिंगली उंगली पर इस पर्वत को उठाकर सभी गांव वासियों की रक्षा कि व इन्द्रदेव का अहंकार भी तोड़ा था जिसे आज भी हिन्दू धर्म में भगवान् के समान ही पूजा जाता है. लेकिन क्या आप जानते है कि भगवान् के समान पूजा जाने वाला यह पर्वत श्रापित है और कहा जाता है की जल्द ही ये पर्वत लुप्त होने वाला है. आइये जानते है इस पर्वत को श्राप किसने दिया और इसके गायब होने में कितनी सच्चाई है?
माना जाता है कि जब भगवान् कृष्ण ने धरती पर जन्म लिया तभी गोवर्धन पर्वत का भी पृथ्वी पर जन्म हुआ यह गोलोक इसी समय पृथ्वी पर अवतरित होकर विराजमान हुआ. वेद पुराणों के अनुसार गोवर्धन पर्वत द्रोणाचल पर्वत के पुत्र है जिनका जन्म शाल्मली द्वीप पर हुआ था. इस पर्वत के पृथ्वी पर जन्म लेने के कुछ समय बाद काशी के एक ऋषि पूतसल्य ने द्रोणाचल पर्वत से उनके पुत्र गोवर्धन पर्वत को काशी ले जाने के लिए प्रार्थना की जिससे द्रोणाचल पर्वत ने ऋषि की प्रार्थना को स्वीकार कर गोवर्धन पर्वत को उनके साथ ले जाने की अनुमति प्रदान कर दी. किन्तु गोवर्धन पर्वत ने जाने के पूर्व ऋषि के समक्ष यह शर्त रख दी कि रास्ते में ऋषि ने उन्हें जहां भी रख दिया वह वहीं स्थापित हो जाएंगे. तब ऋषि ने गोवर्धन पर्वत की बात मान ली.
जब ऋषि गोवर्धन पर्वत को अपने साथ काशी लेकर जा रहे थे तब ब्रजमंडल पहुँचने के बाद गोवर्धन को अपने अस्तित्व में आने के उद्देश्य का एहसास हुआ और भगवान् श्री कृष्ण का सानिध्य प्राप्त करने की इच्छा से गोवर्धन पर्वत ने अनायास ही अपने भार को बढ़ा लिया जिसे ऋषि सेहन नहीं कर पाए और उन्हें उस पर्वत को उसी ब्रजभूमि पर रखना पड़ा. तभी से यह पर्वत उसी स्थान पर स्थित है. किन्तु उस स्थान से जाते समय ऋषि ने गोवर्धन पर्वत को श्राप दिया की वह दिन-दिन घटते जाएगा और एक दिन उसका अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा. शायद इसी कारण से इस पर्वत का आकार छोटा होते जा रहा है और जल्द ही ये समाप्त हो जाएगा.
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