भारत के स्वतंत्रता संग्राम के स्वर्णिम इतिहास पर नजर डालें तो कई ऐसे सेनानी थे जिन्होंने देश की आज़ादी के लिए चुपचाप रहकर अपना योगदान दिया. ऐसे ही लोगों में शुमार थे पंडित गोविन्द बल्लभ पंत. जिन्हें कालांतर में यूपी के पहले मुख्यमंत्री बनने का तो गौरव हासिल हुआ ही और साथ ही भारत रत्न के सम्मान से भी सम्मानित किये गए. आज उनके जन्म दिन पर यह विशेष सामग्री प्रस्तुत है.
10 सितम्बर 1887 को तत्कालीन उत्तर प्रदेश के अल्मोड़ा जिले के खूंट गाँव में जन्मे पंत ने 1909 में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से विधि की उपाधि हासिल की. महात्मा गाँधी के जीवन दर्शन को अपनी आत्मिक ऊर्जा का स्रोत मानने वाले पंत ने अपनी पारदर्शी कार्यशैली से न केवल देश के राज नेताओं का ध्यान आकर्षित किया, वरन काकोरी कांड में अपनी वकालत से अपनी छाप छोड़ी. दरअसल पंत जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वे चिंतक, विचारक के अलावा समाज सुधारक भी थे. उनके साहित्य ने जन मानस को बहुत उद्वेलित किया. राष्ट्रीय कार्यों में उनकी लेखनी ने बहुत कमाल दिखाया. हिंदी को राजकीय भाषा का दर्जा दिलाए जाने में पंत जी के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता.
उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय चेतना के प्रबल समर्थक पंत जी ने सभी मंचों से जब मानवतावादी अपने निष्कर्षों को और निर्धनों के दर्द को प्रसारित किया तथा आर्थिक विषमता को दूर करने के प्रयास किये तो अंततः उनका मूल्यांकन राजनेताओं ने किया, और 1937 में वे संयुक्त प्रान्त के प्रथम प्रधानमंत्री बनाए गए. 1946 में उन्हें उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य मिला.
पुरानी कहावत है कि पुण्य की जड़ पाताल में होती है. इसका सबूत तब मिला जब देशभक्त, कुशल वक्ता, श्रेष्ठ साहित्यकार और उदारमना गोविन्द बल्लभ पंत के गुणों का वास्तविक मूल्यांकन हुआ और 1957 के गणतंत्र दिवस पर उन्हें भारत के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न से सम्मानित किया गया. स्वतंत्रता संग्राम के मौन सेवक ने 7 मार्च 1961 को अंतिम साँस ली और देश इनकी सेवाओं से वंचित हो गया.