अपने कविताओं में कंक्रीट जंगलों का उल्लेख देना हो या फिर चाँद का उदाहरण देते हुए अपने विचार ज़ाहिर करना हो, विश्वप्रसिद्ध गीतकार एवं कवी गुलज़ार (83) उन सभी को एक कविता के स्वरुप में ले ही आते हैं. 1947 के पाकिस्तान से बंटवारे के बाद वो बम्बई के कंक्रीट जंगलों से रूबरू हुए और इस अनूठे अनुभव को उन्होंने फ़िल्म 'घरौंदा' (1977) के गीत 'दो दीवाने शहर में' उकेरा. उन्होंने लिखा कि इन भूलभुलैया गलियों में, अपना भी घर होगा, अंबर पे खुलेगी खिड़की या,खिड़की पे खुला अंबर होगा.उन्होंने बताया कि इस तरह की कल्पनाएं मुंबई शहर में मौजूदा दौर में भी काफी प्रासंगिक हैं.
गुलज़ार अपने अंदाज़ में कविता सुनाने को लेकर भी काफी प्रचलित हैंऔर इसी के चलते उन्होंने अपनी दो ऑडियोबुक 'रंगीला गीदड़' और 'परवाज' भी प्रकाशित किए हैं. गुलज़ार कविता लिखने के तरीके के बारे में बताते हैं और कहते हैं कि, "कविता लिखने के लिए कल्पना की तलाश करने को लेकर कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है. कल्पनाएं हमारे आसपास तैर रही हैं, बस इन पर नजर डालने की जरूरत है".
अपने कविता के पाठ का अनुभव साझा करते हुए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित गुलज़ार ने बताया कि, "मैं अपनी सभी कविताओं की मां हूं. वे मेरी कल्पनाओं से जन्मी हैं'. उन्होंने कहा कि कविताओं को सुनाते समय उससे जुड़ी भावना अपने-आप से आती है, यह सभी कलाकार और रचनात्मक लोगों के साथ होता है."
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