पुण्यतिथि विशेष : धर्म की रक्षा के लिए मौत को गले लगा चुके थे गुरु तेग बहादुर

पुण्यतिथि विशेष : धर्म की रक्षा के लिए मौत को गले लगा चुके थे गुरु तेग बहादुर
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नई दिल्ली. आज गुरु तेग बहादुर जी की पुण्यतिथि है. वे इसी दिन धर्म की रक्षा के लिए शहीद हुए थे. उनकी नेक सोच और मजबूत हौसलों की वजह से सिर्फ सिख समुदाय ही नहीं बल्कि पूरा हिन्दुस्तान उनकी बहुत इज्जत करता है और अक्सर उनकी हिम्मत की मिशाल दी जाती है. तो आइये आज गुरु तेग बहादुर जी की पुण्यतिथि के इस अवसर पर हम आपको उनकी जिंदगी के कुछ ख़ास पहलुओं से रूबरू करवाते है. 

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गुरु तेग बहादुर जी का जन्म 1 अप्रैल, 1621 को पंजाब के अमृतसर में हुआ था. उनका जन्म एक सोढ़ी खत्री परिवार में हुआ था. उनके पिता गुरु हरगोबिंद सिख समुदाय के 6 वे गुरे थे. गुरु तेग बहादुर का बचपन का नाम त्यागमल था लेकिन बाद में मुगलों के खिलाफ हुई एक लड़ाई में उनकी वीरता को देख कर उन्हें तेग बहादुर के नाम से पुकारा जाने लगा था. गुरु तेग बहादुर आगे चल कर सिख समुदाय के नौवें गुरु बने थे. उन्होंने मुग़ल शासन के दौर में  कश्मीरी पंडितों और हिंदुओं की भी बहुत मदद की थी. वे हमेशा से अपने धर्म के लिए तत्पर रहते थे और धर्म की रक्षा के लिए उन्होंने अपना जीवन तक कुर्बान कर दिया था.

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दरअसल मुगल शासक औरंगजेब ने सन 1675 में उन्हें हिंदुओं की मदद करने के लिए पकड़ लिया था और उनसे जबरन इस्लाम काबुल करने के लिए कहा था और चेतावनी भी दी थी कि यदि वे इंकार करेंगे तो उनका सर कलम कर दिया जायेगा. लेकिन गुरु तेग बहादुर ने अपने धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राणों की बिल्कुल भी चिंता नहीं की और मौत को गले लगा लिया.

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