मृत्यु हमारे सभी के जीवन का एक कड़वा सच है जिसे टालना नामुमकिन है जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु निश्चित है. उसके बावजूद भी हर इंसान की यही सोच होती है की उसकी मौत कभी न हो. परन्तु यही इंसान की एक ऐसी इच्छा है जो कभी भी पूरी नहीं हो सकती है. प्रकृति के अनुसार प्रत्येक का मारना निश्चित ही है.
इन नियमो के बंधन में केवल इंसान ही नहीं बल्कि भगवान भी बंधे हुए है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है भगवान विष्णु का राम और कृष्ण के रूप में अवतार धारण करना और पृथ्वी पर जन्म लेना फिर देह त्याग करके वापस अपने लोक लौट जाना. परन्तु शास्त्रों और पुराणो में कुछ ऐसी कथाएं मिलती हैं जिससे यह पता चलता है कि व्यक्ति भले ही मृत्यु के हाथों से बच नहीं सकता लेकिन उसे कुछ समय के लिए आगे टाल सकता है और दीर्घायु प्राप्त कर सकता है.
कुछ आधुनिक शोध और प्रयोगों से भी यह पता चला है कि आप भले ही मृत्यु से बच नहीं सकते लेकिन कुछ वर्षों के लिए मौत को आगे टाल सकते हैं.
शास्त्रों और पुराणों में लिखित कई ऐसे व्रतों के बारे में बताया गया है जिनसे हमारे सिर पर खड़ी मौत को भी टाला जा सकता है. इन व्रतों में सबसे जाना-माना व्रत है वट सावित्री और करवाचौथ का व्रत. यह दोनों ही व्रत महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए रखती हैं. क्योंकि देवी सावित्री और करवा ने यमराज के हाथों से अपने पति की प्राण को वापस छीन लिया था और इनका सुहाग लंबे समय तक बना रहा. इन दोनों व्रतों की तरह महिलाएं जीवित पुत्रिका और अहोई अष्टमी व्रत भी रखती हैं.
साथ ही साथ इन दोनों व्रतों को संतान का रक्षक माना जाता है, ऐसी मान्यता है कि इन व्रतों से संतान की मृत्यु अल्पायु में नहीं होती है. इस प्रकार और भी कुछ ऐसे व्रत है जो पति, संतान और खुद की आयु को बढ़ाने वाला माना गया है. नागपंचमी और नरक चतुदर्शी भी इस तरह का लाभ देने वाला व्रत माना गया है.
शास्त्रों में बताये अनुसार मंत्रों में अद्भुत शक्ति होने के कारण मौत को मात दी जा सकता है. इस संबंध में जिस मंत्र को सबसे शक्तिशाली माना गया है वह है महामृत्युंजय मंत्र. इस मंत्र के विषय में बताया जाता है कि इसमें इतनी शक्ति है कि मृत शरीर में भी जान फूक दे. ऐसी कथा है कि असुरों के गुरू शुक्राचार्य इस मंत्र से मरे हुए असुरों को जिंदा कर देते थे.
इसी मंत्र से ऋषि मार्कण्डेय जिनकी मृत्यु सोलह वर्ष में होनी थी वह मौत को मात देने में सफल रहे थे. इसलिए आज भी जन्मपत्री में अल्पायु और अशुभ योग होने पर ज्योतिषशास्त्री इस मंत्र का जप करने और करवाने का सलाह देते हैं. माना जाता है कि इससे अशुभ योग और गंभीर रोग में लाभ मिलता है. इस मंत्र पर हुए शोध से भी यह पता चला है कि यह स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद होता है.
विज्ञान इस तरह मौत को मात देने की बात करता है
विज्ञान के मुताबिक शरीर जिन कोशिकाओं (सेल्स) से बना है, वे टूटती है और टूटे फूटे सेल्स की जगह नए कोशों में तब्दील होती रहती हैं. जैसे सर्प की त्वचा चार से छह सप्ताह में झिल्ली (केंचुल) के रूप में अलग हो जाते हैं, मनुष्य की त्वचा के कोश भी पांच दिन में बदल जाते हैं. अस्सी दिन में तो प्रोटीन पूरी तरह बदल कर नई हो जाती है. पुरानी का कहीं पता नहीं चलता. सेन गियागो की संस्था शार्प कम्युनिटि मेडिकल ग्रुप के प्रो.केनिथ रोसले के कहे अनुसार मनुष्य के कोशों (सेल्स) को निरंतर सक्रिय और स्वस्थ रखना संभव हो तब उसका शरीर तीन सौ वर्ष तक कायम रह सकता है.
अगर कोई गड़बड़ी न आए तो गुर्दे 200 वर्ष, हृदय 300 वर्ष तक रखे जा सकते हैं, इसके बाद उन्हें बदला भी जा सकता है. हृदय प्रतिरोपण के प्रयोग तो बहुत बेहद सफल हुए हैं. इसके अतिरिक्त चमड़ी, फेफड़े और हड्डियों को क्रमशः एक डेढ़ और चार हजार वर्ष तक दुरुस्त मजबूत रखा जा सकता है. इन्हे बदलना आसान हुआ और और कोशाओं के बारे में प्रयोग कामयाब हुए तो वह दिन दूर नहीं जब वृद्ध व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा बारह सप्ताह में बदल कर नया किया जा सकेगा.
स्विटजरलैंड के जूरिक राज्य के जूरिक शहर स्थित महर्षि वैदिक रिसर्च इंस्टीट्यूट के प्रो. यजनानन देऊ का कहना है कि आज का उपलब्ध शरीर रचना विज्ञान (एनाटॉमी) योगशालाओं में वर्णित रचनाओं से काफी कुछ मिलता-जुलता है. योगशास्त्रों में इड़ा, पिंगला, सुषुम्ना, बज्रा, चित्रणी, ब्रह्मनाड़ी, अलम्बुसा, कुहू, गान्धारी जैसी सूक्ष्म 72 हजार नाड़ियों का विवरण मिलता है. एनॉटामी में भी शरीर के भीतर ऐसी ही जानकारियां हाथ लगी है.
न्यूयार्क यूनीवर्सिटी के डॉ. मिलन कोपेक ने जानने की कोशिश की हैं कि कोश की मूलभूत रचना के तत्वों और क्रम का पता लगाया जाए. जिस दिन वह पता चल गया तो कोशों का शुद्धीकरण और रोगों से बचना तथा कोषों का आमूल-चूल परिवर्तन कर दीर्घायुष्य प्राप्त करना बहुत आसान हो जायेगा.
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