इस साल का होली त्यौहार हमारे दरवाजे तक आ चुका है. आज रात्रि को होलिका दहन के साथ ही रंगों के त्यौहार की धूम शुरू हो जाएगी. कल धुलेंडी पर तो रंगों की बौछार होगी ही , रंग पंचमी के दिन भी इसका धमाल जारी रहेगा. बड़ी -बड़ी गेरें निकलने के अलावा तोप से रंग उड़ाया जाएगा. बता दें कि एमपी के अलावा महाराष्ट्र में भी रंग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है.
जैसा कि पता ही है कि हिंदू पंचांग के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है. होली मनाने के सन्दर्भ में कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं.रंगों के इस त्योहार की जानकारी हमारे धर्म ग्रंथों में तो उल्लेखित हैं ही,लेकिन मुग़ल शासक शाहजहां के काल में होली को ईद-ए-गुलाबी के नाम से जाना जाता था.इसकी जानकारी कम लोगों को होगी. इसी तरह होली की पौराणिक कथाओं में मुख्यतः तीन कथाएं शिव -पार्वती ,राधा -कृष्ण और भक्त प्रह्लाद पर केंद्रित है. पहली कथा भगवान शिव और पार्वती की है , जिसमें हिमालय पुत्री पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थी .लेकिन शिव अपनी तपस्या में लीन थे. इस पर कामदेव पार्वती की मदद करते हैं और प्रेम बाण चलाकर भगवान शिव की तपस्या को भंग कर देते हैं.तपस्या भंग होने से क्रोधित शिव अपना तीसरा नेत्र खोल देते हैं , जिससे कामदेव का शरीर भस्म हो जाता है. इसके बाद शिवजी पार्वती को देखते हैं, पार्वती की आराधना सफल हो जाती है और शिवजी उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लेते हैं. दरअसल होली की आग में वासनात्मक आकर्षण को प्रतीकात्मक रूप से जला कर सच्चे प्रेम के विजयोत्सव के रूप में मनाया जाता है.
जबकि दूसरी पौराणिक कथा हिरण्यकश्यप और उसकी बहन होलिका से जुड़ी है.नास्तिक अत्याचारी हिरण्यकश्यप के यहां ईश्वर भक्त प्रह्लाद ने जन्म लिया. हिरण्यकश्यप सिर्फ अपनी स्तुति कराना चाहता था.लेकिन बेटा प्रह्लाद विष्णु जी के गुण गाता था. प्रहलाद के न मानने पर हिरण्यकश्यप ने उसे जान से मारने के लिए अपनी बहन होलिका की मदद ली जिसे अग्नि से बचने का वरदान प्राप्त था.योजना के अनुसार होलिका प्रहलाद को गोद में लेकर आग में जा बैठी.लेकिन होलिका ही आग में जलकर भस्म हो गई और प्रहलाद बच गए. तब से होलिका दहन होने लगा.
जबकि तीसरी पौराणिक कथा भगवान कृष्ण से जुड़ी हुई है. राक्षसी पूतना ने एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण कर बालक कृष्ण को अपना जहरीला दूध पिला कर मारने की कोशिश की. दूध के साथ बालक कृष्ण ने उसके प्राण भी ले लिये. कहा जाता है कि मृत्यु के बाद पूतना का शरीर लुप्त हो गया इसलिए ग्वालों ने उसका पुतला बना कर जलाया . इसके बाद से मथुरा में होली प्रमुख केन्द्र बन गया. होली का त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है. वसंत के मादक मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया. तब से यह त्यौहार यूपी में खासकर मथुरा -वृन्दावन में हर्षोल्लास से मनाया जाता है.
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