निकाय चुनाव के नतीजे पर बीजेपी जिस लिहाज से बयानबाजी कर रही है, वो चुनाव आयोग के आंकड़ों की समीक्षा करने पर खोखली नजर आती है. सच तो यह है कि महापौर व नगर निगम को अलग कर दें तो निर्दलीय उम्मीदवारों का दबदबा निकाय चुनाव में साफ नजर आ रहा है. जिसका सीधा अर्थ यह है कि वोटरों ने भाजपा सहित अन्य दलों के उम्मीदवारों को सीरे से खारिज कर दिया.
भाजपा ने 652 में कुल 623 निकायों पर चुनाव लड़ा था. इसमें 242 सीटों पर उसकी जमानत जब्त हुई है. 39 प्रतिशत सिटो पर जमानत भी न बचा पाने के बावजूद बीजेपी का ये कहना है कि, उप निकाय चुनावो में पार्टी की शानदार जीत हुई, अपने मुंह मिया मिठ्ठू बनने वाली बात लगती है. मेयर के किसी भी पद पर भाजपा के उम्मीदवार की जमानत नहीं हुई. नगर पालिका अध्यक्ष में भी स्थिति सामान्य थी, यहां पर करीब 22 प्रतिशत उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई.
नगर पंचायत अध्यक्ष में करीब एक चौथाई सीटें जीतने के बाद भी भाजपा 48 प्रतिशत सीटों पर अपनी जमानत नहीं बचा पाई है. इसलिए अकेले नगर पंचायतों का प्रदर्शन बीजेपी के बाकी निकायों की बढ़त की खुशी को फीका करने के लिए काफी है.
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