हमारे शास्त्रों और पुराणों में ऐसी बहुत सी रोचक कथाएं है जो किसी न किसी देवता से सम्बंधित होती है और इन कथाओं के माध्यम से व्यक्ति को कोई न कोई सीख अवश्य प्राप्त होती है. जिससे वह अपने आने वाले समय में या वर्तमान में अपनी गलतियों को सुधार सकता है. ऐसी ही एक कथा भगवान् कृष्ण से सम्बंधित है जो हमें इस बात का ज्ञान कराती है की जब भी हम भगवान् कृष्ण के मंदिर जाते है तो उनकी पीठ के दर्शन हमें नहीं करना चाहिए. आइये जानते है इससे सम्बंधित कथा के अनुसार भगवान् कृष्ण के पीठ के दर्शन से क्या होता है?
इस कथा के अनुसार जब भगवान् श्री कृष्ण और जरासंध के बीच युद्ध हो रहा था तब जरासंध का मित्र कालयवन असुर ने भी भगवान् कृष्ण को युद्ध की चुनौती दी और भगवान् श्री कृष्ण के समक्ष खड़ा हो गया. तब भगवान् श्री कृष्ण युद्ध भूमि छोड़कर भागने लगे तथा कालयवन उनका पीछा करने लगा.
उस समय भगवान् कृष्ण रणभूमि छोड़कर इसलिए भागे थे क्योंकि कालयवन के पिछले जन्म के पुण्य के कारण भगवान् कृष्ण उसे मार नहीं सकते थे. कालयवन भगवान् की पीठ के दर्शन करते हुए उनके पीछे-पीछे भाग रहा था जिसके कारण उसके पुण्य का प्रभाव समाप्त हो गया. तब भगवान् कृष्ण भागकर वहां स्थित एक गुफा में चले गए जहाँ पूर्व से ही राजा मुचुकुंद सो रहे थे जिन्हें इन्द्रदेव से वरदान मिला था की जो भी उसे नींद से जगायेगा राजा की नजर उसपर पड़ते ही वह भस्म हो जाएगा.
तब कालयवन ने उस गुफा में जाकर मुचुकुंद राजा को कृष्ण समझकर उठा दिया जिससे राजा की नजर पड़ते ही वह भस्म हो गया. इसी कथा के कारण भगवान् कृष्ण को रणछोड़ नाम से जाना जाता है. इसी लिए आप जब भी भगवान् कृष्ण या विष्णु के मंदिर में जाते है उनकी पीठ के दर्शन नहीं करना चाहिए.
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