हिन्दू धर्म में तीज-त्यौहार, व्रत-पूजा, अमावस्या-पूर्णिमा आदि सभी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. ऐसी ही एक अमावस्या माघ माह में आती है जिसे मौनी अमावस्या के नाम से जाना जाता है. शास्त्रों में मौनी अमावस्या के दिन का बहुत महत्व है इस दिन व्यक्ति यदि मौन व्रत रखता है या गंगा स्नान व दान करता है तो इससे उसे विशेष फल की प्राप्ति होती है.
देवों व पितरों का संगम
इस माह में पितरों के सभी श्राद्ध-तर्पण आदि कार्य अमावस्या तक व हवन, धार्मिक अनुष्ठान या कोई बड़ा कर्म काण्ड आदि कार्य शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तक किये जा सकते है. ये युतियाँ माघ माह में सूर्य व चन्द्र का मिलन करवाती है जो सर्वश्रेष्ठ होता है. ऐसा माना जाता है कि इसी समय सभी देवी देवता व पितरों की आत्माएं प्रयाग तीर्थ पर एकत्र होती है तथा इसी माह ने देवी देवता और पितरों का संगम होता है.
अशुभ न सोंचे
मौनी अमावस्या के विषय में मान्यता है की इस दिन व्यक्ति को अपने मन, कर्म,व वाणी से किसी के लिए कुछ अशुभ नहीं सोचना चाहिए. और मौन रहकर ही “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”, “ॐ खखोल्काय नमः”, “ॐ नमः शिवाय” आदि मन्त्रों से अर्ध्य देना चाहिए.
पुण्य फल की प्राप्ति
शास्त्रों के अनुसार समुद्र मंथन के समय जिस स्थान पर अमृत की बूँदें गिरी थी जैसे प्रयाग, उज्जैन, हरिद्वार, नासिक इन सभी स्थानों पर यदि व्यक्ति द्वारा जप-ताप, स्नान आदि किया जाता है तो उसे पुण्य फल की प्राप्ति होती है. माना जाता है की जो पुण्य दान, भक्ति, तप आदि से प्राप्त होता है वही पुण्य माघ माह की अमावस्या को इन तीर्थो में स्नान मात्र से प्राप्त हो जाता है.
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