भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस

भारतीय संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस
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नई दिल्ली: 'यत्र नारी पूज्यंते रमंते तत्र देवता' इस वाक्य पर भारत हमेशा से भरोसा करता आया है. लेकिन आज के समय में नारियों के विरुद्ध अपराध रोकने के लिए सख्त कानून बनाने के बाद भी, वे सुरक्षित नहीं हैं.  8 मार्च को पूरा विश्व अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाता है. जिस दिन महिलाओं के सम्मान की, उनके अधिक्कारों की बात की जाती है, लेकिन अगर हक़ीक़त की बात करें तो वो इन सबसे कोसों दूर है..

हालांकि आज कल की महिलाएं अबला नहीं हैं, वे देश के विकास में पुरूषों के बराबर योगदान कर रही हैं और सामाजिक व राजनीतिक सभी प्रकार की बाधाओं को पार करते हुए आगे बढ़ रही हैं. लेकिन फिर भी कन्या भ्रूण हत्या, नर औलाद और कन्या औलाद में भेदभाव, दहेज़ प्रताड़ना, घरेलु हिंसा, बलात्कार जैसे जुर्मों के कारण, कहीं न कहीं उन्हें अब भी बेड़ियों में जकड़े होने का अहसास होता है.

भारत में वीरांगनाओं का इतिहास बहुत पुराना है,  वैदिक काल से लेकर आज तक , हमारे देश की नारियों विश्व के समक्ष देश के मस्तक को ऊंचा किया है. हमे जरुरत है तो बस उन्हें सहेजने की, उन्हें खुले आकाश में उड़ने की आज़ादी देने की, उनकी कल्पनाओं में रंग भरने की. जिस दिन भी हमने यह कर लिया, उस दिन से भारत तेज़ी से समृद्धि की राह पर चल निकलेगा. 

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