वास्तु शास्त्र में दिशाओं का बहुत महत्व होता है यदि व्यक्ति दिशाओं का ध्यान रखकर अपना कोई भी कार्य करता है या वास्तु शास्त्र के अनुसार दिशाओं के दोषों को ध्यान में रखकर अपने घर का निर्माण करता है तो वह हमेशा खुश रहता है. वास्तु शास्त्र में दक्षिण दिशा को बहुत ही विशेष माना गया है यदि इस दिशा में कोई दोष होता है तो व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार कि परेशानियाँ उत्पन्न होती है. तो आइये जानते है दक्षिण दिशा के विषय में वास्तु शास्त्र क्या कहता है?
दक्षिण दिशा को मृत्यु के देवता यम का निवास स्थान माना जाता है इस दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल होता है जो व्यक्ति के सीने, फेफड़े और गुर्दे से सम्बंधित होता है. यदि व्यक्ति के घर कि दक्षिण दिशा में जल स्थान, कोई दरार, कबाड़ या कूड़ादान होता है तो इससे उस घर के मालिक को कई प्रकार के रोग जैसे ह्रदय रोग, जोड़ों का रोग, खून कि कमी से सम्बंधित रोग, आँखों कि समस्या, पेट से सम्बंधित रोग आदि रोग हो सकते है.
यदि कोई व्यक्ति अपने मकान का निर्माण करवाते समय उसका मुख्य द्वार दक्षिण दिशा कि और रखता है और यदि इसका उपाय न किया जाय तो वह जीवन भर कई प्रकार कि परेशानियों से जूझता रहता है या परिवार के किसी सदस्य कि अकाल मृत्यु कि सम्भावना अधिक होती है.
दक्षिण दिशा के उपाय – दक्षिण दिशा के दोषों से बचने के लिए अपने मकान का दक्षिण भाग वाला हिस्सा हमेशा ऊंचा होना चाहिए इससे घर में सम्पन्नता व ख़ुशी का वातावरण बना रहता है. और यदि किसी प्रकार का वास्तु दोष रह जाता है तो घर कि छत पर लाल रंग का ध्वज लगाने से वह भी समाप्त हो जाता है. आप अपने दक्षिण मुखी घर के मुख्य द्वार पर यदि एक तांबे का मंगलयंत्र लगाते है तो आपके उस द्वार का वास्तु दोष समाप्त होता है.
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