सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस आर एम लोढा ने अरुण शौरी की किताब 'अनिता गेट्स बेल' के विमोचन पर सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाते हुए कहा कि न्यायपालिका पर कार्यपालिका का असर अगर ऐसे ही बढ़ता रहा तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाएगा. क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के जज खुद ही न्यायपालिका की स्वायत्तता की गारंटी या भरोसा नहीं दे पा रहे. ये लोकतंत्र के लिए तो अच्छा नहीं ही है साथ ही अगर ऐसा ही होता रहा तो वो दिन दूर नहीं जब न्यायपालिका की दशा बेहद जर्जर और बदहाल हो जाएगी. अभी बहुत कुछ किया जाना है क्योंकि ये कांपता हुआ तंत्र है दरकता हुआ. समय कम है और सुधारने का काम ज्यादा.
किताब के लेखक संपादक, पत्रकार और राजनेता अरुण शौरी ने कहा कि न्यायपालिका अजीब से दौर से गुजर रही है. क्योंकि कहीं चीफ जस्टिस ने सरकार के आगे घुटने टेक दिये हैं तो किसी ने इसी पद पर रहते हुए सरकार के आगे आंसू बहाये. ये कतई उचित नहीं है. न्यायपालिका को चाहिए कि सरकार उनकी नहीं माने तो वो उसे डांटें. कोर्ट के आदेश की बेअदबी करने का मुकदमा दायर करें. कार्रवाई करे. पूरा देश साथ देगा. कार्यक्रम में वरिष्ठ वकील और संविधान के गहन जानकार फली एस नारीमन ने कुछ तंजिया लहजे और कुछ हास्य व्यंग्य का पुट डालते हुए कभी अपनी बात कही तो कभी किताब के कुछ पन्ने पढ़े.अपनी बेबाक शैली में न्यायपालिका पर गहरा रहे संकट की ओर ध्यान दिलाया. उन्होंने दो टूक कहा कि न्यायपालिका की व्यवस्था दरक रही है. हालात लगातार बिगड़ रहे हैं.
नारीमन ने कहा कि हमारे यहां कोर्ट ज्यादा न्याय कम है. वहीं कोलेजियम की मीटिंग ज्यादा और उससे निकलने वाले नतीजे कम हैं. बहुत से बड़े और पेचीदा मामलों की सुनवाई ट्राइब्यूनल को सौंप दी जाती है. लेकिन मुझे ये ट्राइब्यूनल कतई नापसंद है. क्योंकि ट्राइब्यूनल के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी जाती है फिर वही सुनवाई का दौर शुरू हो जाता है. अपील दर अपील... न्याय और न्यायव्यवस्था में विश्वास का पर्दा और जर्जर होता जाता है. पुरे समारोह में न्यायव्यवस्था के मौजूदा हालत पर वार्ता हुई.
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