कर्नाटक: आखिर क्यों लिंगायत हिन्दुओं से अलग हुए

कर्नाटक: आखिर क्यों लिंगायत हिन्दुओं से अलग हुए
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लिंगायत समुदाय का कर्नाटक राजनीति में दखल किसी से छुपा नहीं है और देश की दोनों बड़ी सियासी पार्टिया इस समुदाय के इर्द गिर्द अपना डेरा ज़माने की जुगत में है. कांग्रेस ने बिलकुल सही समय पर लिंगायतों को हिन्दू धर्म से अलग अल्पसंख्यक दर्जा देकर उनकी एक सदी से ज्यादा पुरानी मांग को पूरा कर करते हुए मास्टर स्ट्रोक खेल दिया है, इस बीच बीजेपी भी यही कही अपना धरातल तलाश रही है. आंकड़ों में देखे तो कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के 400 मठ हैं. कर्नाटक में 14 प्रतिशत आबादी लिंगायत समुदाय की है और कुल 224 मे से 100 सीटों पर लिंगायत फ़ैक्टर का प्रत्यक्ष प्रभाव और अन्य पर भी अप्रत्यक्ष प्रभाव देखा जाना लगभग तय है.

वही बात अगर इतिहास की करे तो 1983 में जनता दल के रामकृष्ण हेगड़े को सीएम की कुर्सी मिली. 2008 में येदियुरप्पा और लिंगायतों के मेल ने दक्षिण में बीजेपी केलिए संभावनाएं पैदा की. बहरहाल कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय की मांग को पूरा तो कर दिया है.

मगर अब जानिए लिंगायत समुदाय के हिन्दू धर्म से अलग होने की जिद के कारण - 
-लिंगायत समाज कर्नाटक में बहुत बड़े-बड़े शिक्षण संस्थान चलाता है और वो इन संस्थानों में सरकारी दखल नहीं चाहता.
-लिंगायत समुदाय चाहता है कि इन तमाम संस्थानों से जुड़ी अर्थव्यवस्था और मैनेजमेंट सिर्फ उनके हाथ में रहे.
- इसीलिए अल्पसंख्यक दर्जे की मांग की जा रही है, ताकि इन संस्थानों से सबसे ज्यादा लिंगायत समुदाय के लोगों को फायदा पहुंच सके.
-संविधान का अनुच्छेद 15(5) अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थाओं को विशेषाधिकार देता है. अल्पसंख्यक संस्थानों को शिक्षा के अधिकार के नियम सहित कई और तरह की छूट मिली हुई हैं. 

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