हिन्दू धर्म में किसी भी पूजा-पाठ, कोई मांगलिक कार्य हो या देवों की आराधना, सभी शुभ कार्यों में हाथ की कलाई पर मौली बांधने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. पर क्या हाथो पर मौली को बाँधने का कारण जानते है. मौली को कलावा और रक्षा सूत्र भी कहा जाता है इसे हाथो पर बाँधने के पीछे वैज्ञानिक और धार्मिक दोनों कारण होते है.
कहा जाता है की जब राक्षसों के राजा बलि ने अमरता का वरदान पाने के लिए भगवान वामन ने उनकी कलाई पर मौली को बांधा था.तब उन्हें अमरता का वरदान मिला था.इसलिए मौली को रक्षाबंधन का भी प्रतीक माना जाता है, यहाँ तक की देवी लक्ष्मी ने भी राजा बलि के हाथों में अपने पति की रक्षा के लिए मौली को बांधा था.
मौली को बनाने के लिए कच्चे धागे का प्रयोग किया जाता है.मौली तीन रंगो की होती है. लाल, पीला और हरा, कभी-कभी इसे बनाने के लिए 5 धागों का भी प्रयोग किया जाता है.जिसमें नीला और सफेद भी होता है. 3 और 5 का मतलब कभी त्रिदेव के नाम की, तो कभी पंचदेव.
मौली को हाथो में , गले में और कमर पर बांधा जाता है.अगर आप अपनी किसी मनोकामना को पूरा करना चाहते है तो इसे किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांध सकते है.मन्नत पूरी हो जाने पर इसे खोल दिया जाता है. पशुओं की सुरक्षा के लिए इसे पशुओ को भी बांधा जाता है.
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