आदि काल से ही शंख का बहुत महत्व माना जाता है साथ ही भारतीय धार्मिक मान्यताओं में भी यह बहुत महत्व रखता है। समुद्र में सीप के माध्यम से मिलने वाला शंख कई तरह के आकार का होता है। जिसका उसके आकार ध्वनि आदि माध्यम से अलग अलग महत्व होता है। शंख ध्वनि का उल्लेख और महत्व महाभारत काल में भी मिलता है। कहा जाता है कि प्रतिदिन शंख बजाने से स्वास्थ्य लाभ तो होता ही है साथ ही देवीय शक्ति का आवरण हमारे चारों ओर हो जाता है। यह ईश्वर का आह्वान करने के लिए भी बजाया जाता है। यूं तो प्रतिदिन इसका पूजन किया जाता है लेकिन शुक्रवार के दिन इसका पूजन करना विशेष फलदायी होता है। शुक्रवार को दक्षिणावर्ती शंख का पूजन बहुत ही शुभकारक होता है। इसे लक्ष्मीस्वरूप मानकर इसका पूजन किया जाता है।
इस शंख का पूजन करने के लिए सबसे पहले इसे शुद्ध जल से धोकर इसे साफ करें फिर इसपर कुमकुम और अक्षत अर्पित करें। फिर सुगंधित पुष्प अर्पित कर हाथ जोड़ें। सदैव शंख में जल भरकर रखें और इस जल का सेवन भी करें। घर में और धन वाले स्थान पर इसका जल छिड़कने से विशेष लाभ होता है। मान्यता है कि यह शंख शंखचूड़ नाम से उत्पन्न हुआ था। भगवान शिव ने एक राक्षस का वध करने के बाद उसे समुद्र में डाला था। जो कि बाद में शंखचूड़ के तौर पर उत्पन्न हुआ। इसके बाद कई छोटे छोटे शंख समुद्र से मिले। ऐसे ही भगवान विष्णु का शंख भी हुआ जिसे पांचजन्य कहा गया। अन्य शंखों में शंखों का नाम वामावर्त, दक्षिणावर्त आदि पड़ा।
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