यह कहानी है एक ऐसी लड़की की जिसको भगवान शिव से प्रेम हो गया और अपने प्रेम को पूरा करने के लिए और उन्हें पति रूप में पाने के लिए कठिन तपस्या की.उस कन्या की कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर शिव जी ने उसे वरदान भी दे दिया.और जब शिव जी अपने वचन को पूरा करने के लिए उस कन्या से विवाह करने जा रही थे .तब नारद ने शुचीन्द्रम नामक स्थान पर भगवान शिव को ऐसा उलझाया कि विवाह का मुहूर्त निकल गया.
ऐसी मान्यता है कि कुंवारी नामक यह कन्या माँ दुर्गा का अवतार थी.और इनका जन्म वाणासुर नाम के राक्षस का अंत करने के लिए हुआ था. इस राक्षस को कुंवारी कन्या के हाथों मृत्यु पाने का वरदान प्राप्त किया था.
देवी का विवाह हो जाने पर वाणासुर का वध नहीं हो पाता इसलिए देवताओं के कहने पर नारद जी ने शिव जी और कुंवारी नामक कन्या के विवाह में बाधक बनने का काम किया.जहां देवी का विवाह होना था वह वर्तमान में कन्याकुमारी तीर्थ कहलाता है.विवाह न हो पाने के कारन देवी कुंवारी रह गयी और देवी के कुंवारी रह जाने के कारण ही इस स्थान का यह नाम कन्याकुमारी पड़ा. यहां आज भी अक्षत, तिल, रोली आदि रेत के रुप में मिलते हैं.
कहते हैं यह उसी अक्षत, तिल और रोली के अंश जो भगवान शिव और कुंवारी नामक कन्या के विवाह के लिए थे. विवाह नहीं होने पर विवाह सामग्री को समुद्र में फेंक दिया गया था.
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