हम एक आज़ाद मुल्क है, हमारी आज़ादी को 71 साल हो गए है. अब तक तो हमें विश्व शक्ति बन जाना चाहिए था, पुरे विश्व के देशों में अगर संसाधनों की बात करे तो भारत इकलौता ऐसा देश होगा जहाँ शायद ही किसी चीज की कमी होगी यही कारण रहा है कि हजारों सालों से हम आजाद नहीं हमारी मानसिकता के कारण गुलाम बने रहे, फिर चाहे मुगलों की गुलामी हो, अंग्रेजों की गुलामी हो, सोच की गुलामी हो, जातिवाद की गुलामी हो, पूंजीपतियों की गुलामी हो या राजनेताओं की गुलामी हो, ऊपर से निचे तक आगे से पीछे तक चल रहे देश के सिस्टम को आज तक हमने मिलकर सिर्फ और सिर्फ खोखला ही किया और कुछ नहीं किया.
देश के खोखले सिस्टम के भीतर कई लाशें सड़ रही है, कई कहानिया चीख रही है चिल्ला रही है, इसी खोखले सिस्टम के भीतर कई कहानियां न्याय की गुहार लगा रही है. ये कहानियां देश के हर कोनों, हर गाँव, हर शहर, हर गली, हर मोहल्ले में आपको ऐसे ही सड़कों पर गुजरती हुई दिखाई दे जाएगी बशर्ते आप थोड़ा देखने की कोशिश करे.
एक ऐसी ही कहानी है महाराष्ट्र पुलिस में काम कर रहे है एक कांस्टेबल की, लिखने और पढ़ने में तो ये कहानी बेहद ही छोटी और साधारण सी लगती है, उसका कारण सिर्फ और सिर्फ हमारे भीतर मौजूद संवेदनाओं का मर जाना ही है, असल में जब इस कहानी के भीतर झाँकने की कोशिश करे तो यह दर्द से कराहती है. देश की सेवा करने वाले पुलिस को वैसे तो हम दूर से देखकर सलाम ठोकते है या कभी-कभी कुछ लोग इन्हें गाली भी देते है. मुंबई में कार्यरत दन्यनेश्वर अहीरराव नाम के इस व्यक्ति को महाराष्ट्र पुलिस ने दो महीने से तनख्वाह नहीं दी, पेशे से कांस्टेबल दन्यनेश्वर की तनख्वाह से पूरा घर चलता है, तनख्वाह का एक भी दिन इधर से उधर होना मतलब सैकड़ों परेशानियों का घर में प्रवेश करना है.
सिस्टम के आगे बेबस लाचार इस सिपाही ने अब सरकार और आला अधिकारीयों से गुजारिश की है कि घर में गंभीर बीमारी से जूझ रही पत्नी और घर के खर्च चलाने के लिए उन्हें वर्दी में भीख मांगने की अनुमति दी जाए. दन्यनेश्वर अहीरराव इस बारे में मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से फरियाद की है. यहाँ हम किसी सरकार और प्रशासन को दोष नहीं दे रहे है लेकिन फिर भी ये कैसा सिस्टम है जहाँ गरीब हर पल हर दिन गरीबी के अंधेरों में कितनी ही बार कुचल-कुचल के मर जाता है और फिर ज़िंदा होकर काम पर जाता है, काम से भी उसे हासिल कुछ नहीं होता. ऐसी ढेरों कहानियां गरीबी का लिबास ओढ़े सड़कों पर भटक रही है लेकिन अफ़सोस उन कहानियों को सुनना लोगों को आजकल बोरियत लगता होगा....