जी आज हम आपको बताने जा रहे है एक ऐसी घटना जो की आपको हैरान कर देगी। दरअसल महाराष्ट्र के पिंपरी जिले में रहने वाले दो बच्चों को एक अजीब बीमारी है। इनकी स्किन सांप जैसी नजर आती है। डॉक्टरों के मुताबिक 'लामल्लार इचथ्योसिस' नाम की यह बीमारी जेनेटिक है। ये बच्चे पैदा हुए तो नर्स डर गई। बड़े हुए तो 6 स्कूलों ने एडमिशन ही नहीं दिया। अब दोनों सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं।
बीमारी के बारे में - 13 साल की सयाली कापसे और 11 साल का उसका भाई सिद्धार्थ को 'लामल्लार इचथ्योसिस' नाम की बीमारी है। डॉ. डी.वाई पाटिल हॉस्पिटल एंड रिसर्च सेंटर के डॉक्टर आयुष गुप्ता 2013 से इनका इलाज कर रहे हैं। डॉ. गुप्ता के अनुसार जन्म के साथ मिली यह बीमारी जेनेटिक है। इनके माता-पिता में एक म्यूटेटेड (उत्परिवर्तित) जीन के न होने के चलते बच्चों में भी यह दोष आ गया। एक नॉर्मल इंसान की स्किन हर 28 दिन बाद चेंज होती है। पुरानी स्किन की जगह नई स्किन ले लेती है। आम इंसान में यह प्रॉसेस बहुत तेजी से होती है। इसलिए उसे इस चेंज का पता नहीं लगता। इस मामले में माता-पिता के एक-एक जीन डिफेक्टिव हैं, इसलिए इन बच्चों का स्किन चेंज नहीं हो पाता और शरीर के अलग-अलग हिस्सों में जमा होता रहता है। डॉक्टर्स ने यह भी बताया है की इस बीमारी के कारण कुछ समय बाद स्किन फटने लगती है। उसमें से खून निकलने लगता है। पलकों के पास जमा स्किन उसे झपकने नहीं देती। बॉडी के जॉइंट्स मूव नहीं कर सकते। सिर के बाल भी धीरे-धीरे झड़ने लगते हैं।' इसके आलावा धूप में जाने पर पूरा शरीर लाल हो जाता है। रुखी स्किन के कारण अक्सर दर्द भी झेलना पड़ता है।
बच्चों की मां सारिका कापसे का कहना है - 'जैसे-जैसे ये बड़े हुए, इनके शरीर के निशान गहरे होते गए।' लोग इन्हें देख कर डर जाते हैं। आसपास के लोग इन्हें भूत और चुड़ैल कहते हुए दूरी बना लेते हैं। कुछ साल के लिए इन्हें स्कूल भी छोड़ना पड़ा। 6 स्कूलों ने इनका एडमिशन करने से मना कर दिया।अब दोनों गांव के एक सरकारी स्कूल में पढ़ते हैं। वहां भी बच्चे इनसे दूरी बना कर रहते हैं।
पैदा हुए तो नर्स डर गई - मां सारिका ने बताया की सयाली एक झिल्ली के साथ पैदा हुई थी। उसे देख नर्स डर गई थी। जन्म के बाद कोई इसे छूने को तैयार नहीं था। हमें तुरंत हॉस्पिटल से जाने के लिए भी कहा गया। किसी तरह एक प्राइवेट हॉस्पिटल में भर्ती कराया, तब जाकर सयाली की जान बची। वे यह भी कहती है की ये बच्चे सिर्फ दवाओं पर जिंदा हैं। दिन में दो से तीन बार इनके शरीर पर क्लिनिकल मॉश्चराइजर लगाया जाता है। साथ ही इन्हें हाई डोज की दवाइयां भी दी जाती हैं। इनकी हड्डियां कमजोर हो गईं हैं और रात में इन्हें धुंधला नजर आता है।
इलाज के लिए बेचनी पड़ी जमीन, कर्ज भी लिया - बच्चों के पिता संतोष कापसे पुणे की एक ऑटोमोबाइल पार्ट्स बनाने वाली कंपनी में इम्प्लॉई हैं। इन्होंने बताया- 'बच्चों की बीमारी में तकरीबन 200 रुपए हर रोज खर्च होता है। 15 हजार के आसपास तनख्वाह पाने वाले संतोष अपने पूरे परिवार में इकलौते कमाने वाले हैं। इस पैसे से वे अपने परिवार और गांव में रह रहे अपने माता-पिता की देखभाल करते हैं। संतोष के मुताबिक बच्चों के इलाज के लिए उन्हें अपनी जमीन भी बेचनी पड़ी। लोगों से कर्ज भी लेना पड़ा।
बड़ी होकर चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहती है सयाली - अपनी इस बीमारी को सयाली भगवान का गिफ्ट मानती है। वह कहती है- मुझे आश्चर्य होता है कि भगवान ने मुझे और मेरे भाई को ऐसा क्यों बनाया। मुझे लगता है कि भगवान जिसे सबसे ज्यादा प्यार करता है, उसे वह अलग से निशान के साथ इस धरती पर भेजता है। सयाली ने बताया कि वह बड़ी होकर चार्टर्ड अकाउंटेंट बनना चाहती है सयाली के मुताबिक, स्कूल में उसके कुछ अच्छे दोस्त हैं, लेकिन ज्यादातर बच्चे उससे दूर ही रहते हैं।
पीएम से ही मदद की उम्मीद - इन दोनों के इलाज का ज्यादातर खर्च डॉ. डी.वाई पाटिल हॉस्पिटल ट्रस्ट उठाता है। इनके कई महंगे टेस्ट भी हॉस्पिटल ने करवाएं हैं। बीच-बीच में इन्हें दवाइयां भी हॉस्पिटल की ओर से दी जाती हैं। बच्चों की मां सारिका ने नरेंद्र मोदी से इन बच्चों के इलाज के लिए आर्थिक मदद की अपील की है।
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