श्रीराम-रावण के बीच भीषण युद्ध के दौरान अंततः रावण बुरी तरह घायल होकर धरती पर गिर गया। उसकी मौत को सन्निकट देख प्रभु राम ने लक्ष्मण से कहा कि प्रकांड विद्वान रावण से तुम कुछ शिक्षा सूत्र ले लो। अंतिम समय में दशानन ने तीन बातें कहीं। पहली कभी शुभ काम में देर मत करना। बड़ा कदम उठाने से पहले बड़ों की सलाह पर विश्वास करना। हे लक्ष्मण तीसरी बात क्रोध के साथ कोई निर्णय नहीं करना।
मैंने क्रोध के वशीभूत होकर अनुज विभीषण को लंका से निकाल दिया। उसने मेरे सारे भेद राम को बता दिए। जिसके चलते में मृत्यु को प्राप्त हुआ। अंत में हे राम मुझे क्षमा करना...। कहते हुए लंकापति रावण ने प्राण त्याग दिए। यह उदाहरण ध्यान सागर महाराज ने व्यक्त किए। इसके पूर्व संत श्री ने सीता के विरह में भटक रहे श्रीराम ,लक्ष्मण और उनके हनुमान से मिलन के साथ ही लक्ष्मण को शक्ति लगकर मूर्छित होने के प्रसंग की मार्मिक सजीव प्रस्तुति दी, तो श्रद्धालुओं की आंखें छलक आईं।
श्रीराम-हनुमान का मिलन
शबरी ने श्रीराम को बताया कि, आगे किष्किंधा पर्वत पर बड़े शक्तिशाली वानर, भालू रहते हैं। वे सीता की खोज में आपके सहायक सिद्ध होंगे। आगे बढ़ने पर श्रीराम का हनुमानजी से मिलना होता है। रामायण में प्रभु राम का हनुमानजी से मिलन 'मणिकंचन योग' के रूप में जाना जाता है। हनुमानजी उन्हें वानरों के राजा सुग्रीव से मिलवाते हैं। श्रीराम बालि का वध कर सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बना देते हैं। तब सुग्रीव शपथ लेते हैं कि यदि सात दिन में माता सीता का पता नहीं ढूंढा तो वह अपने प्राण त्याग देंगे। लेकिन उत्सव में डूब जाने के कारण छह दिन बीत जाते है, तब क्रोधित लक्ष्मण, सुग्रीव के दरबार में पहुंचते हैं। उनके तेवर देख भयभीत सुग्रीव क्षमा मांगते हुए अपनी सेना को माता सीता की खोज में लगा देते हैं।
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