प्राचीन भारत में महर्षि वाल्मीकि को आदि कवि के नाम से भी जाना जाता था. इन्ही के द्वारा संस्कृत के प्रसिद्ध काव्य रामायण की रचना की गई थी, जिसे वाल्मीकि रामायण के नाम से जाना जाता है. महर्षि वाल्मीकि केवट जाति के थे, जिन्होंने प्रथम महाकाव्य रामायण की रचना कर आदिकवि का स्थान प्राप्त किया था. क्या आप जानते है इन्हें कवित्व की शक्तियां किस प्रकार प्राप्त हुई ? आइये जानते है.
महर्षि वाल्मीकि के कवि होने के पीछे एक पौराणिक कथा है जिसके अनुसार एक बार ब्रम्हा जी ने माता सरस्वती को किसी योग्य पुरुष का चुनाव करने को कहा और कहा कि आप उसके मुख में एक कवित्व की शक्ति बनकर निवास करो. ब्रम्हदेव की आज्ञा से माता सरस्वती किसी योग्य पुरुष की तलाश में निकलीं. सर्वप्रथम उन्होंने सत्यादि लोक का भ्रमण किया, किन्तु उन्हें वहां कोई भी योग्य पुरुष नहीं मिला तत्पश्चात उन्होंने सातों पाताल लोकों में खोज की लेकिन वहां भी कोई योग्य उम्मीदवार नहीं मिला. माता सरस्वती को योग्य पुरुष की खोज करने में एक युग सतयुग बीत चुका था.
जब त्रेता युग का आरम्भ हुआ तो माता सरस्वती योग्य पुरुष की खोज में भारत भ्रमण पर निकलीं, इसी दौरान वह तमसा नदी के तट पर पहुंची जहां महर्षि वाल्मीकि अपने शिष्यों के साथ निवास करते थे और उस समय वह अपने आश्रम के पास ही घूम रहे थे तब उनकी दृष्टी एक क्रौंच पक्षी पर पड़ी जिसे कुछ समय पूर्व ही किसी व्याध का बाण लगा था और वह अपने पंखों को फड़-फड़ाकर भूमि पर गिर गया था और पीड़ा से तड़प रहा था उस क्रौंच पक्षी की पत्नी पास ही बैठी चै चै कर रही थी. उन पक्षियों की इस दयनीय दशा को देखकर वाल्मीकि जी से रहा नहीं गया और अपनी करूणा से द्रवीभूत होकर उनके मुख से अनायास ही एक श्लोक निकला जो इस प्रकार है.
मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वती समः.
यत क्रौंचमिथुनादेकमवधिः काममोहितम् ..
यह श्लोक माता सरस्वती की कृपा से महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला था. माता सरस्वती ने महर्षि वाल्मीकि को देखते ही उनकी प्रतिभा और योग्यता को भांप लिया था. इसी समय से माता सरस्वती ने महर्षि वाल्मीकि के मुख में सर्वप्रथम प्रवेश किया. व माता सरस्वती की कृपा से वह महाकाव्य रामायण की रचना कर आदिकवि बन गए.
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