पटना : मकान का किराया न चुकाने की वजह से बिहार मैथिली अकादमी की चालीस हजार पुस्तकें किराए के एक मकान में आठ सालों से बंद है. अकादमी 2010 से पहले एक किराए के मकान में चल रही थी. जब ये सरकारी भवन में आई तो किराया बकाया होने के कारण 40 हजार किताबों को मकान में ही छोड़ना पड़ा जिन्हें अबतक नहीं छुड़ाया गया है. किताबें सड़ रही हैं वहीं दूसरी तरफ मकान का किराया भी बढ़ता जा रहा है.
बिहार मैथिली अकादमी की दर्जनों पुस्तकें यूपीएससी से लेकर बीपीएससी तक के सिलेबस में चलती हैं. सिलेबस की किताबों के लिए छात्र भटक रहे हैं और इधर चालीस हजार पुस्तकें किराये के मकान में पिछले आठ सालों से बंधक बनी हुई हैं. अकादमी पिछले आठ साल से उन किताबों को नहीं छाप रही है जो उसके स्टॉक में पहले से मौजूद हैं. जो नई पुस्तकें छपती हैं उनसे अकादमी को लगभग 6 लाख रुपये सालाना कमाई होती है जबकि इससे कम राशि के लिए पुस्तकें आठ साल से बंधक हैं. मैथिली अकादमी को अपना मकान किराए पर देने वाली राजकुमारी सिंह भी कम परेशान नहीं हैं. इनका दर्द ये है कि न तो इन्हें किराया मिला और अब सड़ चुकी किताबें मकान को भी सड़ा रहीं हैं.
राजकुमारी सिंह ने किराए के लिए कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है लेकिन वहां से न्याय कब मिलेगा इसका भी कोई पता नहीं. बिहार मैथिली अकादमी आज अपना अस्तित्व खो चुकी है मगर 1989 के पहले इसके पास 213 पब्लिकेशन थे. इसके दर्जनों पुस्तकों को सहित्य अकादमी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है.
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