हाल ही में उत्तर प्रदेश में मायावती की बहुजन समाज पार्टी ने गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीट पर उपचुनाव में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी को समर्थन का ऐलान किया, वहीं दूसरी ओर बसपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के भाई आनंद ने कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष राज बब्बर से भी मुलाकात की. सूत्रों की मानें तो बसपा ने अपने कोऑर्डिनेटरों को भी मासिक बैठक में ये निर्देश दिए हैं कि वह अभी इस गठबंधन की चर्चा किसी से न करें. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोसायटी एंड पॉलिटिक्स के प्रोफेसर एके वर्मा का कहना है, ‘2019 में लोकसभा चुनावों के लिए सपा और बसपा में से किसी के साथ गठबंधन करना अब कांग्रेस की मजबूरी बन चुकी है. यूपी में उसका अपना कोई जनाधार है नहीं. इसलिए वह दूसरे की बैसाखियों का सहारा लेना चाहती है
उन्होंने कहा 'अगर राज बब्बर और आनंद की मुलाकात हुई है, तो इस गठबंधन से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. और इस गठबंधन से बसपा के वोटर को कोई दिक्कत भी नहीं होगी, क्योंकि बसपा का वोटर दलित और मुस्लिम कभी न कभी कांग्रेस का भी वोटर रहा है. दूसरी बात ये कि अगर बसपा संग कांग्रेस का गठबंधन हो जाता है तो इसमे कांग्रेस का ज्यादा फायदा है, जबकि बसपा के लिए ज्यादा फायदे की बात नजर नहीं आ रही है.’इन दोनों की इस मुलाकात को लेकर अब कई तरह की चर्चाये होने लगी है. नोएडा में खासा असर रखने वाले एक उद्योगपति की पहल पर अभी चंद रोज पहले राज बब्बर और आनंद की ये मुलाकात हुई थी. मुलाकात बेहद गोपनीय रखी गई थी, लेकिन तीन लोगों के बीच होने वाली ये मुलाकात दो दिन भी गोपनीय नहीं रह सकी.
कुछ लोग इस मुलाकात को सपा-बसपा गठबंधन से ज्यादा खास मान रहे हैं. वहीं 2019 में लोकसभा चुनावों के लिए इस मुलाकात को भविष्य के गठबंधन के रूप में भी देख रहे हैं. हालांकि गठबंधन की चर्चाओं से इनकार भी नहीं किया जा सकता है. जानकार इसकी एक वजह ये भी बता रहे हैं कि सपा-बसपा गठबंधन को बसपा ने मैदानी स्तर पर भी अभी तक सिर्फ फूलपुर और गोरखपुर तक ही सीमित रखा है.
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