रिश्वतखोर और निगमायुक्त की यारी, सब पर भारी
रिश्वतखोर और निगमायुक्त की यारी, सब पर भारी
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इंदौर : नंबर वन पर बने रहना किसे अच्छा नहीं लगता और मध्यप्रदेश के इंदौर की बात की जाए तो वह नंबर वन बनने में सबसे अव्वल है. फिर चाहे वह स्वच्छ भारत मिशन हो या भ्रष्टाचार. जी हाँ जहाँ एक और स्वच्छ भारत अभियान के तहत मध्यप्रदेश के इंदौर जिले को नंबर वन घोषित किया गया है वहीं भ्रष्टाचार के मामले में भी इंदौर नंबर वन पर है. हो भी क्यों नहीं, जब 2 दिन पहले रंगे हाथों पकडे जाने वाले एक तीसरी पास रिश्वतखोर मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक मुकेश करोसिया पर कोई कार्यवाई नहीं की जाती, बल्कि उसका झोन बदलकर उसे उसी पद पर दोबारा बहाल किया जाता है, इसे भ्रष्टाचार नहीं तो और क्या कहा जायेगा?

हालांकि निगम परिषद् की बैठक में भ्रष्टाचार को लेकर विपक्षी दल कई बार सवाल उठा चुकी है फिर भी निगम और सरकार के कानो में जूं नहीं रेंगती. अभी दो दिन पहले यानी कि 22 नवम्बर को लोकायुक्त की टीम ने झोन क्रमांक 13 के मुख्य स्वास्थ्य निरीक्षक मुकेश करोसिया को 20 हज़ार की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथों पकड़ा था. उस वक़्त लोकायुक्त के एक अधिकारी ने कहा था कि इस मामले की गंभीरतापूर्वक जांच की जायेगी. अब लगता है कि गम्भीरतापूर्वक जांच का मतलब था मेहरबानी, जो निगमायुक्त ने मुकेश पर दिखाई है. बता दें कि मुकेश को ना तो किसी जांच का सामना करना पड़ा ना ही किसी कार्यवाई का. मुकेश को झोन क्रमांक 13 से हटाकर झोन क्रमांक 4 में उसी पद पर आसीन कर दिया गया. अब ऐसे में निगमायुक्त पर सवालिया निशान लग गए हैं. हालांकि एक जानकारी सामने आयी है जिसमे पता चला है कि मुकेश करोसिया निगमायुक्त मनीष सिंह के ख़ास लोगों में से एक हैं. तो क्या मनीष सिंह अपनी यारी निभाते हुए मुकेश पर यह दरियादिली दिखा रहे हैं?

गौरतलब है कि दरोगा अनिल दयाराम धुलिया ने लोकायुक्त में सीएसआई मुकेश करोसिया के खिलाफ शिकायत दर्ज़ करवाई थी कि, 11 सफाई कर्मचारियों को पिछले चार माह से वेतन नहीं मिला. अब इस रुके हुए वेतन के भुगतान कराने के नाम पर सीएसआई मुकेश ने प्रति सफाईकर्मी पांच हजार रूपए की मांग दरोगा से की थी. जब अनिल पर दबाव बनाया गया तब दरोगा इस तानाशाही रवैया से परेशान हो उठा और लोकायुक्त से गुहार लगायी. इसकी जांच के लिए गयी लोकायुक्त की टीम ने बुधवार 22 नवम्बर को रिश्वतखोर सीएसआई को 20 हज़ार की रिश्वत लेते रंगे हाथों धर दबोचा, ताकि वह ना तो भाग सके न अपना भ्रष्टाचार छिपा सके. इस केस में लोकायुक्त पुलीस अधीक्षक दिलीप सोनी का कहना है कि रिश्वत मांगने की शिकायत पर कार्रवाई की गई थी। 

जब रिश्वतखोर मुकेश को पकड़ा गया और जांच हुई तब पता चला कि मुकेश सिर्फ 3rd क्लास ही पास है. अब सबसे बड़ा सवाल यह उठता है कि जो जिम्मेदारी उसे सौपी गयी है वह उसकी योग्यता पर खरी नहीं उतरती. जब शहर भर में स्वछता मिशन को लेकर सीएसआई की नियुक्तियां हुई थी तब नगर निगम कमिश्नर ने उस दौरान पात्रता को लेकर किन नियमो का पालन किया था? क्योंकि जिसे लिखने का ज्ञान ना हो और साथ ही उसे कंप्यूटर चलना ही ना आता हो उसे इतना बड़ा और इतनी जिमेदारी वाला पद कैसे दिया जा सकता है और वह खुद इस पद को कैसे संभाल सकता है? ऐसा करना उन कर्मचारियों के साथ धोखा करना है जो इस पद के लिए योग्यता रखते हैं. फिर इसके बाद जब मुकेश को रंगे हाथो पकड़ा गया तब उस पर इतनी दरियादिली, इतनी मेहरबानी किस लिए? रिश्वत लेने के जुर्म में और आयोग्य होने पर उसे सफाई कर्मचारी बनाने की सजा मिलनी चाहिए. क्योकि जब दरोगा बनने के लिए ही 10वीं पास होना अनिवार्य है फिर सिर्फ 3री कक्षा पास एक व्यक्ति मुख्य स्वास्थ निरीक्षक कैसे बन सकता है?

अब जब लोकायुक्त द्वारा अदालत में आरोप पत्र दाखिल किया जायेगा तब निगमायुक्त को ना चाहते हुए भी अपने सबसे अजीज़ को निलंबित करना पड़ेगा. अब इस बात की चर्चा पूरे निगम परिसर और निगम यूनियनों में हो रही है की कमिश्नर की मेहरबानी से ही मुकेश की दूर हुई परेशानी. अब आगे क्या होता है यह तो वक़्त ही बताएगा लेकिन इस तरह का भ्रष्टाचार सरकार के नियमो की धज़्ज़ियाँ उड़ा रहा है.

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