मुम्बई: निकाय चुनाव के परिणाम ने शिवसेना को भी सिर्फ मुम्बई महानगर तक ही सीमित कर दिया है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे जितना बढ़-चढ़ कर बोल रहे थे, उतना ही परिणाम ने ठाकरे को जमीन पर ला दिया है। अच्छा होता कि ठाकरे भाजपा के साथ रह कर शिवसेना का विस्तार सम्पूर्ण महाराष्ट्र में करते। लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि अद्धव ठाकरे ने हालातों को सही आकंलन नहीं किया।
अब महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना की जरुरत नहीं है। ठाकरे ने यह घोषणा की थी कि निकाय चुनाव के बाद केन्द्र और राज्य की भाजपा सरकारों से समर्थन वापस ले लिया जाएगा। लेकिन जो परिणाम आज सामने आए हैं उससे लगता है कि यदि समर्थन वापस लिया जाता है तो शिवसेना के सांसद और विधायक बगावत कर देंगे। शिवसेना के सांसद और विधायकों को अब अपना भविष्य भाजपा में ही नजर आ रहा है।
वही महाराष्ट्र के निकाय चुनाव में कांग्रेस का तो पूरी तरह सूपड़ा साफ हो गया। शरद पंवार की एनसीपी फिर भी एक नगर निगम में बहुमत पा सकती है,लेकिन कांग्रेस के खाते में तो एक भी नहीं है। इतनी बुरी दशा के बाद ही संजय निरुपम ने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है।
सब जानते हैं कि यूपी चुनाव में राहुल गांधी, अखिलेश यादव और मायावती ने भाजपा के खिलाफ नोटबंदी मुद्दा ही रखा है, लेकिन महाराष्ट्र के मतदाताओं ने जता दिया कि यह मुद्दा सिर्फ विपक्ष के नेता का है। नोटबंदी को लेकर विपक्ष ने जो भी हमले किए, उसका जवाब नरेन्द्र मोदी ने यही दिया कि इससे आम व्यक्ति को फायदा होगा। शायद अब यूपी में विपक्ष को अपनी रणनीति बदलनी पड़ेगी।
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