माँ ब्रह्मचारिणी
दधाना करपद्माभ्यामक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा॥
नवरात्री के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा पूरे विधि विधान से की जाती है. माँ ब्रह्मचारिणी नवदुर्गा का दूसरा स्वरुप है. माँ ब्रह्मचारिणी स्वेत वस्त्र धारण किये हुए हैं जिनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है. माँ ब्रह्मचारिणी को तपस्चारिणी भी कहा जाता है क्योंकि माता ब्रह्मचारिणी ने कई बर्षो तक निर्जला घोर तप किया. कठोर तप और ध्यान की देवी माँ ब्रह्मचारिणी ने एक हज़ार साल तक केवल फल खाकर तप किया उसके बाद उन्होंने केवल बेल-पत्र और पेड़ों से गिरी पत्तियां खाकर तप किया. इसके बाद उन्होंने निर्जला रह कर कई सालों तक कठिन तप किया.
उन्होंने यह तप भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए किया. इनकी कठिन तपस्या के कारण ही इनका नाम तपस्चारिणी पड़ा. माता ब्रह्मचारिणी दया की प्रतिमूर्ति और आनंदमयी हैं. माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा से सुख समृद्धि प्राप्त होती है. माँ अपने भक्तों पर अपनी कृपा हमेशा बरसाती रहती हैं.
माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा नवरात्री के दूसरे दिन करनी चाहिए और उन्हें चीनी का भोग अर्पित करना चाहिए. पूजा अर्चना के बाद ब्राह्मण को भी चीनी दान करनी चाहिए. पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है. तप की देवी की पूजा अर्चना करने से मनुष्य में तप, तयाग और सदाचार की वृद्धि होती है.