परशुराम भगवान् को विष्णु का छठा अवतार माना जाता है इनका जन्म वैशाख कृष्णपक्ष तृतीय को भ्रन्गुवंशीय ऋषि जमदग्नि की पत्नी रेणुका के गर्भ से हुआ था. इनके विषय में हम आपको इसलिए बता रहे है की यदि आप भी इनके पांच गुण को अपना कर अपने जीवन में हमेशा विजय प्राप्त कर सकते है. आइये जानते है की भगवान् परशुराम में वह पांच गुण कौन से है जिन्हें अपनाने से जीवन में हमेशा विजय प्राप्त होती है.
दान देने का गुण
भगवान् परशुराम की दान की प्रवृत्ति का अनुमान इस बात से लगाया जाता है की अश्वमेघ यज्ञ कर उन्होंने सम्पूर्ण प्रथ्वी को जीत लिया था किन्तु सम्पूर्ण प्रथ्वी का दान करके स्वयं महेंद्र पर्वत पर निवास करने चले गए थे. नैतिकता व न्यायप्रियता का गुण न्याय और नैतिकता के कारण समाज की भलाई के लिए परशुराम में सहस्त्रार्जुन से युद्ध किया और न चाहते हुए भी उसके सम्पूर्ण वंश का नाश किया.
माता पिता को ईश्वर माना
भगवान् परशुराम अपने माता पिता को सभी से श्रेष्ठ मानते थे और उनके आदेश का बिना किसी तर्क के पालन करते थे. इसलिए एक बार अपने पिता के कहने पर उन्होंने अपना शीश काट कर अलग कर दिया था. जिससे उनके पिता ने प्रसन्न होकर उनकी माता के प्राण उन्हें वरदान में वापस लौटाए थे.
संहारक और भक्ति का गुण
भगवान् परशुराम हमेशा अपने विवेक से कार्य करते थे आवेश में आकर भी उन्हें अपने विवेक पर संयम रखना आता था और उनके आवेश में आना ही उनके जन्म का उद्देश था.
क्षमा करने का गुण
जब भगवान् राम ने शिव धनुष को तोड़ा तो लक्ष्मण के द्वारा परशुराम से तर्क वितर्क करने के बाद भगवान् राम के निवेदन पर परशुराम ने लक्ष्मन को क्षमा कर दिया. और कर्ण के सम्बन्ध में भी कर्ण का सत्य जानकर परशुराम में कर्ण को उसकी विद्या भूलने की वजय उसे केवल यह ही श्राप दिया की वह सर्वाधिक जरूरत पड़ने पर अपना दिव्यास्त्र चलाना भूल जाएगा.
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