अब किसी को फोन पर भी जातिगत टिप्पणी करने महंगा पद सकता है. आपको बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के व्यक्ति के खिलाफ सार्वजनिक जगह पर फोन पर भी की गई जातिगत टिप्पणी को अपराध माना है. इस मामले में अधिकतम पांच साल की सजा का प्रावधान है.
गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए आदेश दिया है. कि अब फोन पर भुई जाती सूचक शब्दों का प्रयोग करना दण्डित मना जाएगा. बता दे कि सुप्रीम कोर्ट ने एक व्यक्ति के खिलाफ चल रही आपराधिक प्रक्रिया रोकने और एफआईआर रद्द करने से इनकार करते हुए यह आदेश दिया. व्यक्ति के ऊपर फोन पर एससी/एसटी समुदाय से आने वाली एक महिला पर जातिगत टिप्पणी का आरोप है. जिसपर जस्टिस जे चेलमेश्वर और एस अब्दुल नजीर ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया. जिसके बाद 17 अगस्त को हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश निवासी इस आरोपी की याचिका को रद्द कर दी थी. याचिका में आरोपी ने महिला की एफआईआर रद्द करने की मांग की थी.
वही सुप्रीम कोर्ट ने याचिका रद्द करते हुए कहा कि आरोपी को साबित करना होगा कि उसने फोन पर सार्वजनिक जगह से बात नहीं की थी. आरोपी के वकील ने कहा कि शिकायतकर्ता ने जमीन की बिक्री से जुड़े कुछ झूठे आरोप लगाए हैं. प्रथम दृष्टया नहीं लगता कि आरोपी ने धोखाधड़ी या धमकी का अपराध किया गया है. साथ ही अदालत ने कहा कि मुकदमा सिर्फ यह है कि फोन पर बातचीत सार्वजनिक है या नहीं.
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