संसद की कार्यवाही दोपहर तक स्थगित, फिर कल तक के लिए स्थगित ये शब्द आपने समाचारों में हजारों बार पढ़े होंगे. सदन की कार्यवाही हंगामे की भेट चढ़ जाना या सदन की गरिमा को ठेस पहुंचाते हुए सदन के काम काज में खलल पैदा कर मेजों और कुर्सियों को पीटना आम बात हो गई है. सदस्यों की बेहद गिरी हुई हरकतों ने सदन के गौरव को कई बार धूमिल भी किया है. फ़िलहाल अविश्वास प्रस्ताव को लेकर हंगामा लगातार जारी है. बुधवार को भी लोकसभा हंगामे की वजह से स्थगित कर दी गई.
लोकसभा स्थगित करने से पहले स्पीकर सुमित्रा महाजन ने कहा कि हर कोई अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा करने के लिए तैयार है, पक्ष और विपक्ष दोनों ही तैयार हैं लेकिन हम इस तरीके से मामले की कार्यवाही आगे नहीं बढ़ा सकते. 16 मार्च से सदन में चल रही अविश्वास प्रस्ताव को लेकर बहस को आठ दिन हो गए है और इस मसले पर संसद में केवल 16 मिनट ही बात हो पाई है. जी हां ये आंकड़ा चौकाने वाला जरूर है, मगर समय की बर्बादी के साथ जनता के पैसे की ये बर्बादी जिसके आंकड़े और भी भयावह है.
यह बात सभी को पता है, मगर मुद्दा ऐसा है जिस पर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों नहीं बोल सकते. उनकी अपनी सियासी मजबूरियां है. बहरहाल मंगलवार से टीआरएस के सांसदों ने प्रदर्शन करना बंद कर दिया है, बुधवार को केवल एआईएडीएमके के सांसदों ने सदन की कार्यवाही के समय प्रदर्शन किया. ये आंकड़े सिर्फ एक मर्तबा के है मगर यदि इनको साल भर गिना जाये तो कई छोटे मोटे देशों की जीडीपी के बराबर धन की बर्बादी हमारे नेता हंगामा मचाने और सदन से वाकआउट करने में कर देते है.
सूत्रों के अनुसार सदन की एक मिनट की कार्यवाही का खर्चा 2.5 लाख रुपए है. इस हिसाब से एक दिन में यदि 8 घंटे भी काम हो तो 12 करोड़ रुपए का खर्चा एक दिन होता है. उस हिसाब से सदन ने बीते 8 दिनों में 96 करोड़ का खर्च कर दिया है और 16 मिनट मतलब 40 लाख का काम किया है. साफ है कि देश को चलाने वाले नेता बीते 8 दिनों में जनता की जेब से सरकारी खजाने में पहुंचे 95 करोड़ 60 लाख रुपए की भेंट मेजों और कुर्सियों को पीटने में चढ़ा चुके है.
बजट सत्र के दूसरे दिन भी सदन मे हंगामा
लगातार 12 दिन सदन की कार्रवाई हुई बाधित