नई दिल्ली: दूध का जला छाछ को भी फूंक फूंक कर पीता है, इस कहावत की हकीकत को समाजसेवी अन्ना हजारे से अच्छा शायद ही कोई जानता हो. दरअसल बात यह है कि, इस महीने की 23 मार्च को अन्ना हजारे देश की राजधानी दिल्ली में फिर से एक आंदोलन शुरू करने जा रहे है, अन्ना का यह आंदोलन बाकी आंदोलन से विपरीत इसलिए भी है कि, अन्ना ने आंदोलन से पहले से एक शर्त के तहत से अपनी कोर कमेटी से एक हलफनामा दाखिल करा लिया है, जिसके तहत आंदोलन से जुड़े कोई भी सदस्य भविष्य में किसी भी राजनीतिक पार्टी से जुड़ नहीं सकेंगे.
बता दें, अन्ना ने इससे पहले भी 2013 में एक महाआंदोलन छेड़ा था, उस समय केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी. आंदोलन की कोर कमेटी से जुड़े लगभग सभी मेंबर ने आंदोलन के तुरंत बाद राजनीति का रुख किया, जिसके अन्ना कड़े विरोधी रहे है. अन्ना हमेशा से अपने सभी आंदोलनों को राजनीति से दूर ही रखते है. 2013 में हुए आंदोलन में अन्ना के मुख्य सहयोगी रहे अरविन्द केजरीवाल, कुमार विश्वास, प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव, और किरण बेदी ने आंदोलन के बाद राजनीति में कदम रखा था. जिसके बाद अन्ना और कोर कमेटी के बीच दुरी बढ़ती गई और बाद में अन्ना ने इन सबसे खुद को अलग कर लिया.
अन्ना के इस तरह से हलफनामे काम मुख्य कारण हालाँकि अरविन्द केजरीवाल ही है, जो अन्ना के हमेशा से मुख्य सहयोगी रहे है. आंदोलन के बाद अरविन्द केजरीवाल ने अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर दिल्ली में 'आम आदमी पार्टी' के नाम से नई पार्टी का गठन किया. पार्टी बनने के बाद दिल्ली की सभी विधानसभा से चुनाव लड़कर ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी और दिल्ली की जनता ने भी अरविन्द का साथ दिया था. ऐसे में राजनीति को नापसंद करने वाले अन्ना हजारे को यह रास नहीं आया.
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