व्यक्ति अपने जीवन में चिंता को छोड़ चिंतन की ओर जाता है. व्यथा को छोड़ जीवन में व्यवस्था की ओर, और प्रशस्ति को छोड़ प्रस्तुति की ओर कदम बढ़ाता है, तो उसके जीवन में विकास ही होता है. उसके कार्यों में अवरोध उत्पन्न नहीं होता और उसे समस्या का सामना करना नहीं पड़ता. जब भी हम अपने जीवन में किसी भी बात को स्वीकारें तो पहले उस पर पूर्ण रूप से चिंतन करें, केवल उस पर अंधानुकरण न करें. हर व्यक्ति अपने जीवन में किसी न किसी व्यथा की बात को पग-पग पर प्रकट करता है, पर वह व्यवस्था पर ध्यान नहीं देता. महत्वपूर्ण सूत्र है कि शिकायत या व्यथा ही प्रकट न करें, व्यवस्था भी करें.
जो धार्मिक होगा, वह हमेशा धर्म का गुणगान करेगा, धर्म को ही वह सबकुछ बताएगा. जो अर्थशास्त्री है. वह सारे समाज में अर्थव्यवस्था के आधार पर अवलोकन करेगा. इस जगत में जो जिस विषय का व्यक्ति है, वह उस विषय की प्रशस्ति करता है, पर सबकी अपनी-अपनी सीमाएं होती हैं. आज इस जगत में भौतिक समस्याओं पर बहुत ध्यान केंद्रित किया जाता है, पर समस्याओं को पैदा करने वाली जो मनोवृत्ति है, उसकी उपेक्षा की जाती है. आंतरिक समस्या पर जब तक ध्यान नहीं दिया जाता, तब तक मनुष्य शांति से नहीं जी सकता और न ही समस्याओं का समाधान ही होता है.
आज हर मनुष्य में प्रदर्शन की भावना उत्पन्न होती है, जो बुद्धि के साथ जुड़ी हुई है। यह व्यक्ति की सबसे बड़ी मानसिक समस्या है. व्यक्ति के जीवन में वस्तु का प्रदर्शन करना बाहरी बात है, पर प्रदर्शन की मनोवृत्ति तो उसकी आंतरिक समस्या है. इसलिए आपको चाहिए की सर्वप्रथम आप अपने आंतरिक भाव को बदलें अपनी मनोवृति में सुधार लाएं. यदि प्रतिस्पर्द्धा और विकास मनुष्य को केंद्र में रखकर होता है तो कोई अनिष्ट परिणाम नहीं आता, किंतु जहां केंद्र में पदार्थ आकर बैठ जाता है और उसे भोगने वाला मनुष्य केंद्र से हटकर परिधि में चला जाता है, वहां तमाम समस्याएं पैदा होती हैं.
प्लाॅट खरीदने से पहले जान लें की वह लेने लायक है भी या नहीं
तो विवाहित जीवन से परेशानियां हो जाएंगी छू-मंतर
जानिये गंगा जल किस तरह आपके जीवन में खुशियाँ ला सकता है
घर में खुशियां ही खुशियां लाता है वास्तुपुरूष