नई दिल्ली: संसद के शीतकालीन सत्र में भाजपा तीन तलाक अध्यादेश को सियासी हथियार न बना ले इसको लेकर विपक्षी दल पूरी तरह सतर्क हो गए हैं। जानकारी के अनुसार बता दें कि भाजपा की ऐसी कोशिश कामयाब न हो इसको लेकर विपक्षी दल तीन तलाक अध्यादेश में कुछ संशोधन का सुझाव तो देंगे, मगर सरकार राजी नहीं हुई तो वे मुखर विरोध से बचेंगे। वहीं संसद के शीतकालीन सत्र में भाजपा सरकार को घेरने से लेकर उसके सियासी दांव थामने की रणनीति पर विपक्षी दलों के नेताओं की अनौपचारिक बातचीत का सिलसिला शुरू हो गया है।
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वहीं विपक्षी पक्ष के सूत्रों ने बताया कि इस सिलसिले में अयोध्या राम मंदिर प्रकरण, रोजगार-किसानों, जम्मू एवं कश्मीर के घटनाक्रम के अलावा तीन तलाक अध्यादेश से जुड़े मामलों पर संसद में संयुक्त रणनीति तय करने पर आम राय है। इसके साथ ही वामदलों के नेताओं ने इस बारे में कांग्रेस के संसदीय रणनीतिकारों से तीन तलाक पर पार्टी के नजरिये की भी टोह ली है। यहां बता दें कि विपक्षी नेता अपने अंदरूनी संवाद में यह मान रहे हैं कि तीन तलाक अध्यादेश का सीधे विरोध करना लोकसभा चुनाव के मद्देनजर घातक फैसला होगा। इसीलिए वाजिब यही होगा कि मुस्लिम समुदाय की कुछ चिंताओं का निराकरण करने के लिए सरकार को इसमें कुछ संशोधनों के लिए राजी किया जाए।
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यहां बता दें कि कांग्रेस सूत्रों ने तीन तलाक अध्यादेश को लेकर पार्टी की रणनीति के संदर्भ में कहा कि विपक्ष के दूसरे दलों से जारी बातचीत के बाद ही अंतिम रुख तय होगा। मगर जहां तक पार्टी के नजरिये का सवाल है तो अध्यादेश में सरकार ने कांग्रेस के कुछ सुझाव मान लिए हैं जिन्हें पूर्व में संसद में लाए गए बिल में शामिल करने के लिए वह राजी नहीं थी। इसके साथ ही कांग्रेस के इस रुख का संकेत साफ है कि तीन तलाक अध्यादेश पर वह अब सियासी जोखिम लेने के मूड में नहीं है। वैसे भी कांग्रेस तीन तलाक के खिलाफ कानून का सैद्धांतिक समर्थन करती रही है।
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