मानव जीवन गृहों पर आधारित होता है, ब्रम्हाण्ड में मौजूद हर एक गृह मानव के जीवन को किसी न किसी तरह से प्रभावित करते हैं। इसके अलावा नक्षत्र भी मानव जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं। ज्योतिषशास्त्र के मुताबिक 27 नक्षत्रों में से स्वाति नक्षत्र का स्थान 15वां नम्बर पर है। जिसका मतलब होता है स्वतः आचरण करने वाला। वायु के देवता पवन देव को स्वाति नक्षत्र का अधिपति माना जाता है। इसी प्रकार देवी सरस्वती को भी इसकी अधिष्ठात्री देवी मानते हैं, जिसके कारण देवी सरस्वती का भी इस नक्षत्र पर प्रभाव रहता है। देवी सरस्वती को विद्या, ज्ञान, संगीत तथा वाणी की देवी माना जाता है। इस तरह वायु और देवी सरस्वती की विशेषताएं स्वाति नक्षत्र में नजर आती हैं।
स्वाति नक्षत्र का स्वामी राहु है। शास्त्रों के अनुसार स्वाति नक्षत्र के सभी चार चरण तुला राशि में स्थित होते हैं, जिसके कारण इस नक्षत्र पर तुला राशि तथा इस राशि के स्वामी गृह शुक्र का भी प्रभाव पड़ता है। नवगृहों में से शुक्र को सुंदरता, सामाजिकता, भौतिकवाद, कूटनीति तथा शक्ति आदि के साथ जोड़ा जाता है तथा शुक्र की ये विशेषताएं स्वाति नक्षत्र में दिखाई देती हैं। इसी के चलते इस नक्षत्र के जातकों में दिखावा करने की आदत भी होती है। क्योंकि शुक्र और राहु दोनों ही गृह चरम भौतिकवाद से जुड़े हैं जिनमें दिखावा करने की प्रवृति चरम भौतिकवादी होने का संकेत ही देती है। स्वाति नक्षत्र में स्थित होने पर राहु तथा शुक्र काफी बलशाली हो जाते हैं, क्योंकि दोनों का स्वभाव स्वाति नक्षत्र के स्वभाव से मेल खाता है।
तो ये है भगवान गणेश को सर्वप्रथम पूजे जाने का कारण
इस चीज में बहुत ही भाग्यशाली होते हैं मिथुन राशि के लोग
इस शक्ति की वजह से ही भगवान गणेश लिख पाए महाभारत
शनिवार के दिन जा रहे शाॅपिंग करने, तो भूल से भी ये चीजें न खरीदें