फाल्गुन पूर्णमा आते-आते टेसू के फूल परिपक्व हो जाते हैं. वह एक लौ की तरह दमकते हैं. इनका रंग लाल, और बनावट हूबहू लौ की तरह ही होती है. इसकी यह विशेषता रहती है कि इन दिनों पलाश के पेड़ की डालियों पर पत्तियां नहीं बल्कि फूल ही फूल नजर आते हैं.
जब टेसू के फूलों को वृक्ष अंजुलियों में भरकर भूमि पर न्योछावर करने लगता है तो नीरस जन का मन भी पुलकित हो उठता है. हालांकि टेसू के फूलों में खुशबू नहीं होती परंतु उससे निर्मित रंग में हल्की सी महक होती है. इन फूलों से निर्मित केसरिया नारंगी रंग से ब्रज की होली खेली जाती है.
टेसू के पेड़ पर सिर्फ फूल ही होते हैं फल नहीं. इन फूलों का भी आयुर्वेदिक महत्व है. पलाश के फूल गुर्दे की सूजन दूर करने में उपयोगी होते हैं. पलाश के फूलों को किसी देव अर्चना से अलग नहीं किया गया है. इसके फूल देवी-देवताओं को नहीं चढ़ाए जाते, लेकिन पलाश भोजन करने के लिए पवित्र माना गया है. प्रसाद और पंचामृत के लिए भी इसके पत्ते शुभ माने जाते हैं.