भारत में 17 मई से रमजान के पाक महीने कि शुरुआत होने के साथ ही रोज़े का आगाज़ हो चुका है. रमज़ान में रखें जाने वाले रोज़े का अपना ही महत्त्व होता है.रमजान के महीने में रखे जाने वाले रोज़ो के लिए विशेषतः मन को विचलित करने वाले विचारों और इन्द्रियों को काबू में रखने के लिए रोज़े किये जाते है.रमज़ान में रोज़दार सूरज के निकलने से पहले सुबह-सुबह सहरी करते हैं और सूरज के अस्त होने पर अपना रोजा इफ्तार के साथ खोलते हैं.
पृथ्वी के अलग-अलग घुमाव के कारण दुनिया के हर जगह सहरी और इफ्तार का समय अलग-अलग होता है. रोजे के घंटे भी अलग-अलग होते हैं. इससे हर देश के लोगों के लिए रोजा रखने का समय अलग-अलग हो जाता है. दुनिया के एक भाग नार्वे कि बात कि जाये तो यहाँ पर 20 घंटे का रोज़ा रखा जाता है, क्योंकि प्राय: यहां सूरज डूबने के इंतजार में तारीख बदल जाती है और सूरज अपनी जगह से टस से मस नहीं होता. फिलहाल, इस साल यहां दिन के लगभग 20 घंटों तक सूरज आसमान में बना रहता है.
करीब दो लाख मुसलमान नार्वे में रहते हैं. चूँकि रमजान की तारीख लूनर कैलेंडर से निर्धारित होती है इसलिए हर साल यह पर्व 11 दिन आगे बढ़ जाता है.हालाँकि पिछले 2 साल के दौरान ही रमजान का महीना गर्मी के उस समय पर पहुंच गया है जब दिन के महज 2-3 घंटे के लिए यहां सूरज अस्त होता है.रमजान के पाक महीने में सच्चे मुसलमान को दिन के समय उपवास रखने और रात के समय इबादत करने को अल्लाह ने जरूरी बताया है. लिहाजा, नॉर्वे और आसपास के कुछ देशों में मुसलमानों को 20 घंटे से अधिक रोजा रखना पड़ रहा है और बचे हुए 2-3 घंटे अगले दिन के रोजे की तैयारी में लगाना पड़ रहा है.
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