इस बार दिवाली 19 अक्टबूर की है. कार्तिक माह में हिंदू धर्म से जुड़े कई बड़े त्योहार मनाएं जाते हैं. इस माह में ही छठ, गोवर्धन पूजा, धनतेरस और रमा एकादशी जैसे बड़े पर्व मनाएं जाते हैं. शुभ फलदायी व्रत है एकादशी व्रत. यह हर माह में दो बार आती है - शुक्ल पक्ष में और कृष्ण पक्ष में.
चन्द्रमा की स्थितियों के आधार पर यह व्रत रखते हैं, ताकि मानसिक रूप से कोई समस्या न हो. इस दिन विशेष कथा पढ़कर भगवान की अराधना की जाती है. इस व्रत को करने से भगवान अपने भक्तों के घर में सुख-समृद्धि का आशर्वाद देते हैं. इन दिनों में व्रत रखने से मन और शरीर दोनों स्वस्थ रहता है और सामान्य बीमारियां परेशान नहीं करतीं. मन की एकाग्रता बढ़ाने के लिए और मन से सम्बंधित समस्याओं के निवारण के लिए यह व्रत अचूक होता है.
एकादशी व्रत का पारण द्वादशी तिथि समाप्त होने से पहले करना अति आवश्यक है. एकादशी व्रत में द्वादशी के दिन सूर्योदय होने से पहले पारण करना होता है. पारण करने के बाद ये व्रत संपन्न होता है.
रमा एकादशी तिथि व शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि शुरू- 15 अक्टूबर सुबह 4.33 बजे
एकादशी तिथि का समाप्त- 16 अक्टूबर सुबह 3.33 बजे तक
पारण का शुभ समय- 01.09-03.26 बजे के बीच
कैसे करें रमा एकादशी व्रत
एकादशी व्रत के नियमों का पालन व्रत के एक दिन पहले यानि दशमी के दिन से ही शुरू हो जाता है। रमा एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत संकल्प करना चाहिए। एकादशी व्रत के दिन भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसके बाद भगवान विष्णु का धूप, पंचामृत, तुलसी के पत्तों, दीप, नेवैद्ध, फूल, फल आदि से पूजा करने का विधान है।
रमा एकादशी व्रत का महत्त्व
पद्म पुराण के अनुसार रमा एकादशी व्रत कामधेनु और चिंतामणि के समान फल देता है। इसे करने से व्रती अपने सभी पापों का नाश करते हुए भगवान विष्णु का धाम प्राप्त करता है। मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके अलावा रमा एकादशी व्रत के प्रभाव से धन- धान्य की कमी दूर होती है।
रमा एकादशी व्रत कथा
कहा जाता है कि एक मुचुकुंद नाम के राजा थे. जो इंद्र, वरुण, कुबेर, विभीषण आदि उसके मित्र थे. राजा की एक कन्या थी. राजा बड़ा सत्यवादी और विष्णुभक्त था. उसका राज्य बिल्कुल निष्कंटक था. उसकी चंद्रभागा नाम की एक कन्या थी जिसका विवाह उसने राजा चंद्रसेन के पुत्र शोभन से कर दिया.
राजा शोभन बिना खाना-पानी एक मिनट भी नहीं रह सकता था. एक बार राजकुमारी और शोभन राजा मुचुकुंद के राज्य में गए. लेकिन राजकुमारी परेशान हो रही थी क्योंकि उस दिन एकादशी थी. और उसके पिता के राज्य में इस दिन कोई भी खाना नहीं खाता है.
ये सुनकर शोभन ने प्रण किया कि वो भी व्रत करेंगे. राजा शोभन ने व्रत तो किया लेकिन राजा भूख-प्यास बर्दाश नहीं कर पाया और उनकी मौत हो गई. इसके बाद राजकुमारी ने अपने पिता के राज्य में रह कर ही पूजा पाठ की और एकादशी का व्रत पूरी विधि-विधान के साथ करना शुरू किया. इस व्रत को करने से उसके पति को अगले जन्म में देवपुर गांव के राजा के रूप में जन्म लिया. इस प्रकार कहा जाता है कि इस व्रत को करने से जीवन की कठनाईयां कम होती है. साथ ही घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है.
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