भगवान राम का आज जन्मदिवस है, जिसे पूरे देश में रामनवमी के त्यौहार के रूप में हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. हम सब लोग यह तो जानते हैं कि अयोध्या के राजा दशरथ के पुत्र राम, मर्यादा पुरुषोत्तम थे. लेकिन बहुत कम लोग ही यह जानते हैं की राम, श्रीराम कैसे बने. क्योंकि ईश्वर तो हम सभी के भीतर होता है, फिर हम राम क्यों नहीं बन पाते ? तो आज हम जानते हैं कि ऐसे कौन से गुणों को राम ने आत्मसात किया था, जिनकी वजह से वे श्रीराम बने और आज उन्हें भगवान मानकर पूजा जाता है.
भगवान राम विषम परिस्थितियों में भी नीति सम्मत रहे. स्वयं की भावना व सुखों से भी समझौता कर न्याय और सत्य का साथ दिया, फिर चाहे वो राज्य त्यागना हो या बाली का वध करना हो. माता कैकई की आज्ञा से 14 वर्ष वन में बिताना, सीता का त्याग करने के बाद, राजा होते हुए भी सन्यासी जीवन जीना, उनकी सहनशीलता का परिचायक है. केवट हो या सुग्रीव, निषादराज हो या विभीषण, अहिल्या हो या शबरी, श्रीराम ने हर वर्ग के लोगों के साथ सामान प्रेम किया. एक बार प्रभु राम के भ्राता लक्ष्मण ने भी शबरी के जूठे बेर खाने से मना कर दिया था, लेकिन मात्र भाव को महत्त्व देने वाले श्रीराम ने वे बेर बड़े रस लेकर खाए.
लंकापति रावण का संहार करने के बाद श्री राम ने खुद उनके भाई लक्ष्मण को रावण के पास ज्ञान ग्रहण करने के लिए भेजा था, जब लक्ष्मण ने इसका कारन पूछा तो उन्होंने बताया कि तब श्री राम ने लक्ष्मण को समझाया कि हे लक्ष्मण , रावण के इन दस सिरों में से एक ऐसा सिर था जिसमे बहुत ज्ञान, पवित्रता और भक्ति थी. इसी तरह हर किसी के पास दस या उससे ज्यादा सिर होते हैं. एक दिन आपका सिर लालच से भरा होता हैं , तो दूसरे दिन नफरत से , तीसरे दिन प्यार व करुणा से, सुंदर, कुरूप या अनेक प्रकार के कामनाओ से, भावनाओं से हमारे यह सिर भरे होते हैं, अगर हम भी अपने अंदर के दशानन को मार सकें, और राम के इन गुणों को आत्मसात कर सकें तो श्रीराम की तरह बन सकते हैं.
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