आप सभी को बता दें कि नवरात्र के पांचवे दिन मां स्कंदमाता की पूजा होती है और मां के इस स्वरूप की पूजा करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. कहा जाता है मां भक्त के सारे दोष और पाप दूर कर देती है और माँ अपने भक्तों की समस्त इच्छाओं की पूरा भी करती है ऐसे में प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है. 'या देवी सर्वभूतेषु माँ स्कंदमाता रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।' ऐसे में आप सभी को यह भी बता दें कि भगवान स्कंद 'कुमार कार्तिकेय' नाम से भी जाने जाते हैं। और यह प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे यह आप सभी जानते ही होंगे.
वहीं पुराणों में इन्हें कुमार और शक्ति कहकर इनकी महिमा का वर्णन किया गया है. इसी के साथ ही इन्हे भगवान स्कंद की माता होने के कारण माँ दुर्गाजी के इस स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है. आप सभी को बता दें कि स्कंदमाता की चार भुजाएँ हैं और इनके दाहिनी तरफ की नीचे वाली भुजा, जो ऊपर की ओर उठी हुई है, उसमें कमल पुष्प है वहीं बाईं तरफ की ऊपर वाली भुजा में वरमुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा जो ऊपर की ओर उठी है उसमें भी कमल पुष्प ली हुई हैं. इनका वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और यह कमल के आसन पर विराजमान होती हैं.
कहते हैं नवरात्रि-पूजन के पाँचवें दिन का शास्त्रों में पुष्कल महत्व बताया गया है. नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा की जाती है.
इस मंदिर में लड़कियों को देवी मानकर उन्हें निर्वस्त्र कर पूजा जाता है
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