एक तरफ देश में, देश के बच्चों के लिए तरह-तरह की योजनाएं निकाली जाती है, कभी 'बेटी बचाओं-बेटी पढ़ाओ' पर जोर दिया जाता है तो कभी 'लाड़ली लक्ष्मी योजना' लेकिन अफ़सोस जहाँ इन योजनाओं के बड़े-बड़े बैनर सड़कों पर रौशनी करते पाएं जाते है, वहीं दूसरी ओर इसके पीछे छुपे घने अँधेरे में आज भी कई बच्चें गुमनामी की ज़िंदगी की जी रहे है, जी हाँ 'नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो' के जो आकड़ें सामने आते है वे काफी चौकाने वाले है.
'नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो' की 2016 की रिपोर्ट के अनुसार मिसिंग बच्चों में करीब 63407 बच्चे ऐसे है, जिनके बारे में किसी को कोई खबर तक नहीं, इससे पहले के सालों में आई रिपोर्ट के अनुसार 48,162 बच्चें मिसिंग थे जो अब तक मिसिंग ही है, और भविष्य में भी मिसिंग ही रहने वाले है, कुल मिलाकर यह आकड़ा 1,11,569 जा पंहुचा है. अब ऐसे में सोचने वाली बात यह है कि, टेक्नोलॉजी में उन्नति करने वाले देश में इतने बच्चें गायब होते है, और किसी के पास कोई इनफार्मेशन नहीं.
अब इस खबर से निकलता है एक चौकाने वाला फैक्ट जो यह बताता है कि, कुल मिसिंग बच्चों में करीब 60-65 % लड़कियां है, जो तस्करी कर रेड लाइट एरिया में पंहुचा दी जाती है, कुछ बच्चियां गावों से अगवा कर कम श्रम दान के चक्कर प्रताड़ित कर शहरों के घरों में काम करती है, जो एक तरह से देश में कानूनन अपराध है, साथ ही यह बंधुआ मजदूर जैसी स्थिति है. यह आकड़े बताते है कि, देश में यह कितनी भयवाह स्थिति है जिस पर किसी का कोई ध्यान नहीं जाता है.