हमारे शास्त्रों में बहुत सी ऐसी बातों का उल्लेख किया गया है, जिनसे आज भी बहुत से व्यक्ति अनभिज्ञ है. शास्त्रों में दी गई इन बातों और घटनाओं का भविष्य से गहरा संबंध होता है. इसी कारण इन घटनाओं का निर्धारण पूर्व में ही हो जाता है. ऐसी ही एक घटना ब्रह्म देव से सम्बंधित है, इस संसार में कहीं भी ब्रह्म देव के मंदिर देखने को नहीं मिलते है. आइये जानते है इस घटना की उत्पत्ति किस प्रकार हुई. एक बार अपनी श्रेष्ठता को लेकर भगवान विष्णु और ब्रह्म देव में विवाद उत्पन्न हो गया. जिसमे ब्रह्म देव का कहना था, कि उन्होंने इस सृष्टि की रचना की है, इसलिए वह सबसे श्रेष्ठ है तथा भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार होने के कारण अपने आप को श्रेष्ठ मान रहे थे.
इस विवाद का कोई अंत ही नही हो रहा था. तभी वहां एक अग्नि रुपी विशाल शिवलिंग की उत्पत्ति हुई. इसे देखकर दोनों ने कहा कि जो भी इस शिवलिंग के छोर का पता लगाएगा वही सबसे श्रेष्ठ समझा जाएगा. दोनों इस बात पर सहमत हो गए और उस शिवलिंग के छोर का पता लगाने के लिए निकल पड़े कुछ समय बाद भगवान विष्णु हार कर वापस लौट आये, लेकिन जब ब्रह्म देव वापस आये तो उनके हाथ में एक केतकी का फूल था. उन्होंने आकर भगवान विष्णु से असत्य कहा कि मुझे इस शिवलिंग के छोर का पता चल गया है जिसका साक्षी यह केतकी का फूल है.
ब्रह्म देव के इस असत्य कथन को सुनकर भगवान शिव वहां प्रकट हुए और क्रोध में आकर उन्होंने ब्रह्म देव का शीश काट दिया तथा केतकी के फूल को श्राप दिया कि आज के बाद कभी-भी इस फूल का उपयोग पूजा में नहीं किया जा सकेगा. तभी से केतकी के फूल को पूजा में इस्तेमाल नहीं किया जाता और यही कारण है कि संसार में ब्रह्म देव के मंदिरों का अस्तित्व नही के समान है.
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