मनुष्यता के इतिहास में उनीसवीं शताब्दी का बड़ा महत्त्व है. यह वह कालखंड है जब मार्क्स ने वर्ग–संघर्ष के नारे के साथ क्रांति का आवाह्न किया था. मार्क्स ने आधुनिक मजदूर वर्ग को वह क्रान्तिकारी ताकत बताया, जो समाज को पूंजीवाद से कम्युनिज़्म तक ले जाने में अगुवाई देने को इच्छुक है और इसके काबिल भी है. कार्ल मार्क्स का जन्म 195 वर्ष पहले हुआ था और उनका देहांत 120 वर्ष पहले हुआ, परंतु दुनिया को उन्होंने जो विज्ञान प्रदान किया था वह आज तक बहुत ही सजीव रूप में हमें प्रेरित करता है.
मार्क्स ने न सिर्फ समाज के विकास के आम नियम का आविष्कार किया, बल्कि उन्होंने बेशी मूल्य के सिद्धांत के आधार पर पूंजीवादी समाज की गति के विशेष नियम का भी आविष्कार किया। मार्क्स के सिद्धांत ने यह स्थापित किया कि वेतन के लिये किया गया श्रम ही पूंजीवादी मुनाफें का स्रोत है. यह मानते हुए कि अपने पूर्व के विचारकों ने वर्ग संघर्ष को पहचाना था, मार्क्स ने यह विशेष योगदान दिया कि वर्ग संघर्ष अनिवार्यतः श्रमजीवी वर्ग के अधिनायकत्व की ओर बढ़ता है, उन्होंने यह दिखाया कि पूंजीवादी समाज वर्ग विभाजित समाज का अंतिम रूप है, जिसका अगला ऊंचा पड़ाव वर्गहीन समाज - आधुनिक कम्युनिस्ट समाज होगा.
विश्व भर में कई राजनीतिक पार्टियां इसी 'कम्युनिस्ट' नाम से जानी जाती हैं, इसके सिद्धांतो पर अमल करते हुए वे विकास के पथ पर अग्रसर भी हो रही है, लेकिन भारत में इस नाम का मज़ाक बना कर रख दिया गया है. पश्चिम बंगाल में उसके शासन के खिलाफ़ मजदूर और मेहनतकश जनसमुदाय उठ खड़े हुए हैं, मजदूर वर्ग को शासक वर्ग होने के काबिल बनाना तो दूर, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) ने पूंजीपति वर्ग के शासन को चलाने का बीड़ा उठा लिया है. हिन्दोस्तान की कम्युनिस्ट ग़दर पार्टी यह मानती है कि आज कार्ल मार्क्स के नाम और काम की हिफाज़त करने का मतलब है मजदूर वर्ग को शासक वर्ग बनने के लिये तैयार करना. मार्क्सवाद की हिफाज़त करने का मतलब है कि जिन्होंने मार्क्सवाद को ‘कम्युनिस्ट’ वेश में पूंजीवादी शासन का एक रूप बना दिया है, उनका पर्दाफाश करना होगा और उन्हें हराना होगा.
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