हमारे देश में त्यौहारों एवं उत्सवों का महत्व आदि काल से रहा है,जो लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं.देश के चार प्रमुख त्यौहारों में होली भी शामिल है .होली को लेकर देश के विभिन्न क्षेत्रों में अलग -अलग मान्यताएं प्रचलित हैं.लेकिन रंगों का यह त्यौहार खुद को खुश रखने के साथ दूसरों को भी प्रसन्न रखने की प्रेरणा देता है.यही नहीं यह त्यौहार वसंत का संदेशवाहक भी होने से इसकी मस्ती की खुमारी का रंग होली से पहले ही चढ़ने लगता है.
उल्लेखनीय है कि प्रचलित मान्यताओं के अनुसार उत्तर पूर्व भारत में होलिकादहन को भगवान कृष्ण द्वारा राक्षसी पूतना के वध दिवस के रुप में जोड़कर, पूतना दहन के रूप में ,तो दक्षिण भारत में इसी दिन भगवान शिव ने कामदेव को तीसरा नेत्र खोल भस्म करने का उल्लेख मिलता है .वहीं प्राचीन काल में हिरण्यकश्यपु नामक असुर की बहन होलिका द्वारा प्रह्लाद को मारने के उद्देश्य से उसे अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठने पर होलिका के जलकर भस्म हो जाने और ईश्वर भक्त प्रह्लाद के बच जाने पर यह त्यौहार मनाया जाता है .कारण जो भी हो , होली की हर कथा हमें 'असत्य पर सत्य की विजय' का उत्सव हंसी ख़ुशी मनाने का सन्देश देती है .
ऐसा माना जाता है कि होली के दिन लोग पुरानी दुश्मनी को भुलाकर एक-दूसरे के गले मिलते हैं और फिर से दोस्त बन जाते हैं. राग-रंग का यह लोकप्रिय पर्व होली वसंत का संदेशवाहक भी है. इस संदर्भ में किसी कवि की यह पंक्तियाँ सामयिक हैं -
नफ़रतों के जल जाएं सब अंबार होली में,गिर जाये मतभेद की हर दीवार होली में.
बिछुड़ गये जो बरसों से प्राण से अधिक प्यारे, गले मिलने आ जाएं वे इस बार होली में.
होली रंगों का, हँसी-ख़ुशी का त्यौहार है, लेकिन आज होली का स्वरूप बदल गया है. प्राकृतिक रंगों की जगह रासायनिक रंगों ने ले ली है .भांग -ठंडाई की जगह नशेबाजी और लोक-संगीत की जगह फिल्मी गानों का जोर है. अब रंगों का बाज़ार रासायनिक रंगों में तब्दील हो गया है. जबकि रासायनिक रंग हमारी त्वचा के लिए नुकसानदायक होते हैं. इसलिए सावधानी रखने की जरूरत है. बिगड़ते पर्यावरण के बीच प्राकृतिक रंगों की ओर लौटना समय की मांग है. रंगों का त्यौहार होली हमें प्रसन्न रहने की प्रेरणा भी देता है, इसलिए होली के इस त्यौहार को आडम्बर की बजाय हंसी -ख़ुशी के साथ मनाने में ही सार्थकता है.
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