इंदौर : त्रिपुरा में बीजेपी प्रचंड बहुमत की और अग्रसर हो गई है और महज पांच सालो में शून्य से शिखर तक का ये सफर नॉर्थ ईस्ट में संघ के प्रचारक रहे सुनील देवधर के बिना संभव नहीं था. संघ के प्रचारक रहे सुनील देवधर जब त्रिपुरा की जिम्मेदारी संभाली तो हालात इतने बेहतर नहीं थे बेहतर क्या बत्तर थे, क्योकि तब बीजेपी इस सूबे में शून्य सीटों वाली पार्टी में शुमार थी. फिर क्या था संघ के प्रचारक सुनील देवधर ने संघ की स्टाइल में बीजेपी को संघठित किया और परिणाम आप सब के सामने है. बकौल सुनील देवधर संघ की छोटी छोटी शाखा से लेकर बड़ा संगठन खड़ा करने की ट्रेनिंग काम आई और उन्होंने उसी स्टाइल में त्रिपुरा में बीजेपी का संगठन खड़ा किया. त्रिपुरा में मुकाबला लेफ्ट से था जो कि कैडर बेस्ड पार्टी है, इसलिए बीजेपी के सामने चुनोती बड़ी थी.
गौरतलब है कि 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी 50 सीटों में से 49 में अपने कैंडिडेट की जमानत तक नहीं बचा पाई थी और आज के परिणामों से सुनील देवधरकी मेहनत का अंदाज लगाया जा सकता है. उनके एक करीबी के मुताबिक देवधर ने अपने पंसद की एक खास डिश भी खानी छोड़ दी थी और शपथ ली थी कि त्रिपुरा में बीजेपी की जीत के बाद ही वह खाएंगे. उन्होंने जमीनी हकिगत से काम शुरू किया और बीजेपी को त्रिपुरा में सिरमौर बना कर ही छोड़ा.
संघ के एक सीनियर प्रचारक के मुताबिक संघ का संगठन तैयार करने का तरीका फूलप्रूव है और वही त्रिपुरा में संघ के पूर्व प्रचारक ने करके दिखा भी दिया. सुनील देवधर के बारे में बात करे तो वे सुनील देवधर नॉर्थ ईस्ट में संघ के प्रचारक रहे हैं. 1994 में वह शिलॉग में प्रचारक थे. वहां वह शाखा में दंड (लाठी चलाना) की ट्रेनिंग देते थे.
देवधर मजाक में कहते हैं कि मैं प्रवास में हूं दंड से राजदंड तक. यानी दंड की ट्रेनिंग देने से लेकर राजनीति तक. देवधर 2002 तक प्रचारक रहे. वह 2014 में लोकसभा चुनाव में बनारस में पीएम मोदी की सीट के इंचार्ज भी रहे. देवधर कहते हैं कि नॉर्थ ईस्ट में प्रचारक रहने के दौरान मैंने यहां के लोगों की दिक्कतों को समझा और जाना कि किस तरह इन्हें दूसरे राज्यों में दिक्कत होती है और तब ‘माई होम इंडिया’ नाम से एक एनजीओ बनाया. इसका मकसद नॉर्थ ईस्ट के लोगों को देश के दूसरे हिस्से में भी अपनापन महसूस हो और मदद मिले, यह था. यह संगठन अभी 65 शहरों में हैं। इस संगठन के जरिए भी देवधर की नॉर्थ ईस्ट में पकड़ मजबूत हुई जिसका फायदा बीजेपी को चुनाव में मिला.
देवधर को 2009 में राष्ट्रीय संयोजक बने, यहां से देवधर की राजनीति की पारी शुरू हुई. देवधर ही त्रिपुरा के प्रदेश अध्यक्ष विप्लव देव को दिल्ली से त्रिपुरा लेकर आए. देव त्रिपुरा के ही हैं और युवा भी हैं इसलिए वह देवधर की पहली पसंद बने. 2013 के दिल्ली विधानसभा चुनाव में देवधर को साउथ दिल्ली की जिम्मेदारी दी गई थी. अमित शाह ने 2014 में उन्हें पालगढ़ भेजा गया जहां पूरे महाराष्ट्र में सीपीएम की इकलौती सीट थी. चुनाव में यह सीट बीजेपी के पास आ गई और यहीं से अमित शाह ने देवधर को त्रिपुरा भेजने की सोची. आज उस सोच पर देवधर की मेहनत का परिणाम सामने है.
त्रिपुरा में भाजपा की जीत के निहितार्थ
नागालैंड : बीजेपी 27 कांग्रेस 02 NPF 26 अन्य 04
मेघालय: बीजेपी 04 कांग्रेस 16 NPP 19 अन्य 07