करुणा का भाव करुण रस से उपजा है

करुणा का भाव करुण रस से उपजा है
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मानव विकास का सबसे अच्छा साधन उसकी सोच होती है , सोच से ही मानव के जीवन में विकास होता है सोच ही मानव को उन्नति और अ उन्नति की और अग्रसर करती है, आज यदि हम किसी के बारे में अच्छा सोचें उसकी समस्याओं को समझे ,मन में  परोपकार की भवन को जगाएं इस तरह की सोच से मानव के जीवन में करुणा का भाव जाग्रत होता है. यदि हमारी सोच अच्छी  नहीं है, किसी के भी प्रति गलत विचार रखते है,परोपकार और सहायता का कोई नाम ही नहीं तो यह मानों हमने मानवता को धोखा दिया है फिर हम केवल मानव रूपी स्थूल शरीर को धारण किये हुए है. जिसका कोई अस्तित्व नहीं बस जी रहें है.

दूसरों के लिए अच्छा सोचना, अच्छा करना, उनके उज्जवल भविष्य की कामना करना हीं करुणा को साबित करता है, मानव जीवन में दुसरो के लिए दया का भाव रखना उनके दुःख में दुखी होना ही करुणा का भाव होता है.

करुणा का भाव करुण रस से उपजा है - देख सुदामा की दीं दशा करुणा करके करुणा निधि रोये . 

करुणा के भाव से मानव को इस जगत में बड़ी से बड़ी ख्याति भी मिल जाती है करुणा का भाव चित्त से होता है, करुणा शुद्ध हृदय से संबंधित है। लंबी साधना के बाद जब गौतम सिद्धार्थ के भीतर करुणा जगी तो वह भगवान बुद्ध बन गए। बुद्ध की साधना का लक्ष्य व्यक्तिगत निर्वाण न होकर सर्वगत कल्याण था। यही कारण है कि बुद्ध को 'अर्हत" की यात्रा रास नहीं आई और वे अनवरत साधना करते हुए 'बोधिसत्व" तक पहुंचे।

आप इस बात को भी भली भांति जानते ही होंगे की करुणा कैसे उपजती है. करुणा सकारात्मक सोच है। यदि किसी के रास्ते में कांटे बिछे हैं. या किसी राहगीर को कोई समस्या आ जाये तो यदि व्यक्ति सहज भाव से उन काटों को हटाये और उस व्यक्ति को आई समस्या में उसका साथ देते हुए सहायता करे यह उसकी करुणा है.

 

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