सुनिए 'रुस्तम-ए-हिंद' गामा पहलवान की कहानी, नवाज की बीवी है गामा की पोती

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काल गामा पहलवान के नाम से पहचाने जाने वाले दुनिया के सबसे बड़े पहलवान का जन्मदिन था. जिनका असली नाम गुल मुहम्मद था. 1878 में अमृतसर में जन्मे गामा पहलवान उर्फ़ ग़ुलाम मोहम्मद. वालिद देसी कुश्ती के खिलाडी थे. जिन्हे दुनिया सलाम करती थी.

गामा पहलवान अपनी पहलवानी के अलावा अपनी दरियादिली के लिए भी जाने जाते थे. उन्होंने 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे में कई हिन्दुओ की जान बचायी थी. 10 साल की उम्र से पहलवानी शुरू करने वाला गामा पहलवान 1890 में जोधपुर के राजा की तरफ से करवाए गए दंगल में हिस्सा लिया था.

नन्हे गामा इस दंगल में 15 पहलवानो में शामिल हुए थे. जिसके बाद राजा ने उन्हें विजेता घोषित किया था. 19 तक होते होते गामा ने देश के कई बड़े पहलवानो को पटखनी दी. गुजरांवाला के करीम बक्श सुल्तानी अब भी गामा के लिए चुनौती थे. आखिर वह दिन आ ही गया जब दोनों पहलवानो का सामना हुआ. 7 फुट लम्बे बक्श सुल्तानी के आगे गामा बच्चे नज़र आ रहे थे.

लाहौर में आयोजित हुए इस दंगल को देखने पूरा शहर उमड़ पड़ा था. सब जानना चाहते थे की इस मुकाबले में जीत किसकी होगी. तीन घंटे तक चले मुकाबले में कोई जीत नहीं सका. मुकाबला बराबरी पर छूटा. इस दंगल के बाद गामा देश भर में पहचाने जाने लगे थे.

इस कुश्ती के बाद गामा लंदन में ‘चैंपियंस ऑफ़ चैंपियंस’ लड़ने पहुंचे थे. लेकिन कम कद के चलते आयोजकों ने उन्हें कुश्ती में हिस्सा नहीं लेने दिया था. जिसके बाद गामा पहलवान ने गुस्सा होकर ऐलान कर दिया था की वे दुनिया के किसी भी पहलवान को हरा सकते हैं. उन्हें जो पहलवान हरा देहा उसे इनाम देकर वह हिंदुस्तान लौट जायेंगे.

उनके इस चैलेंज को अमरीका के बेंजामिन रोलर ने स्वीकार कर लिया था. उन्होंने रोलर को पहले राउंड में डेढ़ मिनट और दुसरे राउंड में 10 मिनट से भी कम समय में हरा कर तहलका मचा दिया था. इसके बाद अगले ही दिन उन्होंने बाकि 12 पहलवानो को मिंटो में हरा कर सनसनी फैला दी थी.

आखिर आयोजकों को उन्हें प्रतियोगता में लेना ही पड़ा. बंटवारे के समय उनकी गली में कुछ मुस्लिम लोग हिन्दू परिवारों को मारने पहुंचे थे. इस दौरान गामा पहलवान अपने शाहगिर्दो के साथ हिन्दू परिवारों की रक्षा करने के लिए गली में सबसे आगे खड़े थे. उन्हें देख किसी की हिमत नहीं हुई के आगे बढ़ जाए.

इस बीच एक व्यक्ति आगे बढ़ा उसे गामा पहलवान ने एक चपत लगायी वह दोबारा उठ कर खड़ा नहीं हुआ. गामा पहलवान ने कहा था की, 'इस गली के हिंदू मेरे भाई हैं. देखें इनपर कौन सा मुसलमान आंख या हाथ उठाता है.' और जब हालत और ज्यादा बिगड़ गए थे तब उन्होंने अपने पेसो से हिन्दू परिवारों को सकुशल हिंदुस्तान पहुंचाया था.

लेकिन ऐसे महान इंसान का अंतिम समय काफी गरीबी और लाचारी में गुज़रा कोई उनकी मदद करने आगे नहीं आया था. कुछ कुश्ती प्रेमियों ने और बड़ौदा के राजा ने उनकी मदद ज़रूर की थी. शायद आपको पता नहीं होगा पाकिस्तान के वेतमान प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ की बीवी कुलसुम गामा पहलवान की पोती है.

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