व्यक्ति के जीवन का सबसे जरूरी पड़ाव उसका विवाह होता है व्यक्ति के विवाह के पश्चात ही वह सांसारिक जीवन में प्रवेश करता है किन्तु हिन्दू शास्त्रों में व्यक्ति के विवाह के सम्बन्ध में बताया गया है की किसी भी व्यक्ति को विवाह अपने ही गोत्र में नहीं करना चाहिए. हिन्दू धर्म में कई समुदाय है जिनमे अलग – अलग गोत्र होते है जिसमे मान्यता है की 3 या 4 गोत्र को छोड़कर ही विवाह करना चाहिए इसमें माँ नानी और दादा के गोत्र में विवाह नहीं किया जाता है. आइये जानते है की व्यक्ति को किन –किन गोत्र में विवाह नहीं करना चाहिए.
तीन गोत्र को छोड़कर करें विवाह
शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को विवाह तीन गोत्र छोड़कर करना चाहिए जिसमे पहला गोत्र उस व्यक्ति का होता है जिसका विवाह होने वाला है और दूसरा गोत्र उस व्यक्ति की माँ का गोत्र होता है तथा तीसरा गोत्र उसकी दादी का गोत्र होता है इन तीनो गोत्रों के आलावा व्यक्ति किसी भी गोत्र में विवाह कर सकता है. प्राचीन मान्यता के अनुसार एक ही गोत्र के लड़का लड़की भाई बहन माने जाते है.
एक ही गोत्र में विवाह करना होने वाली संतान के लिए हानिकारक
जब व्यक्ति अपने ही गोत्र में विवाह करता है तो उसकी संतान में कई प्रकार के अवगुण आ जाते है. माना जाता है की एक ही गोत्र में विवाह करने से उत्पन्न संतान में रचनात्मकता की कमी होती है और उनमे अनुवांशिक बिमारी होने का भी अधिक खतरा होता है.
वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक शोध के अनुसार जब व्यक्ति एक ही गोत्र में विवाह करता है तो उसे अनुवांशिक बिमारी होती है जो की एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में प्रवेश करती है. क्योकि दोनों व्यक्ति के जींस अलग नहीं होते है.
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