हमारे धार्मिक ग्रंथों व पुराणों में बहुत सी कथाओं का उल्लेख किया गया है, ऐसी ही एक कथा का उल्लेख शिव पुराण में भी किया गया है, जिसके अनुसार जब माता सती ने अग्नि समाधि लेकर अपने प्राणों का त्याग किया था, तो उस समय महादेव बहुत दुखी हो गए थे और इस पीड़ा को सह नहीं सके व माता सती के मोह में उन्होंने उनके जलते शरीर को अपने हांथों में लेकर ब्रहमांड में विचरण करने लगे.
भगवान विष्णु ने महादेव के मोह को भंग करने के लिए अपने सुदर्शन से माता सती के शव के टुकड़े कर दिए जो पृथ्वी के विभिन्न स्थानों पर जाकर गिरे, जिनसे उस स्थान पर शक्ति पीठों का निर्माण हुआ. इन्ही शक्ति पीठों में से एक हिमाचल प्रदेश के धौलपुर में स्थित है, जिसे छिन्नमस्तिका धाम कहा जाता है इस शक्ति पीठ को चिंतपूर्णी माता के नाम से भी जाना जाता है.
इस शक्ति पीठ के विषय में मान्यता है कि यहां माता सती के चरण गिरे थे. यह शक्तिपीठ चार शिवलिंगों से घिरा हुआ है, जिसमे से पहला शिवलिंग शिववाड़ी के नाम से प्रसिद्ध है, जो गर्गेट के पास स्थित है और द्वितीय शिवलिंग अम्ब में कालेश्वर धाम के नाम से जाना जाता है. यह दोनों शिवलिंग पूर्व में विलुप्त होने के कारण इनकी जानकारी अधिक लोगों को नहीं है, इनकी खोज बाद में की गई.
इनमे से तृतीय शिवलिंग नारायण देव के नाम से जाना जाता है, जो ज्वाला जी रोड पर स्थित है तथा चतुर्थ शिवलिंग मचकूंद महादेव के नाम से विख्यात है, जो पुली से बाएं तरफ पांच किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. जो भी व्यक्ति इन चारों शिवलिंग के दर्शन कर माता चिंतपूर्णी के दर्शन करता है उसकी सभी इच्छाएं पूर्ण होती है.
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