जन्म से ही व्यक्ति के जीवन पर गृहों का प्रभाव आरम्भ हो जाता है, जो उसकी मृत्यु तक रहता है. ग्रहों के प्रभाव के कारण ही व्यक्ति के जीवन में सुख व दुःख, लाभ और हानि आदि घटनाएं घटित होती हैं. इसी प्रकार व्यक्ति के जीवन में संतान सुख भी गृहों का ही योग है, जो व्यक्ति के जीवन में पुत्र व पुत्री तथा उनकी संख्या निर्धारण करते हैं. आज हम आपको कुछ ऐसे गृहों के विषय में बताएँगे, जो आपके जीवन में संतान योग का कारक होते हैं और पुत्र व पुत्री योग का निर्माण करते हैं. आइये जानते हैं वह गृह कौन से हैं?
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य, मंगल, गुरु को पुरुष गृह माना गया है और शुक्र व चन्द्र को स्त्री गृह कहा जाता है, जिसमे बुध और शनि को नपुंसक गृह मानते हैं. जब व्यक्ति की कुंडली में संतान योग कारक पुरुष होता है, तो पुत्र तथा कारक गृह स्त्री हो तो पुत्री प्राप्ति के योग बनते हैं.
जिस व्यक्ति की कुंडली में शनि और बुध योग कारक का निर्माण कर किसी विषम राशि में होते हैं, तो पुत्र और सम राशि में होते हैं, तो पुत्री का जन्म होता है..इसी प्रकार सप्तमान्शेष कोई पुरुष गृह हो तो पुत्र और स्त्री हो, तो पुत्री संतान सुख प्राप्त होता है.
जब व्यक्ति की कुंडली में गुरु के अष्टक वर्ग में गुरु से पांचवें भाव पर पुरुष गृह बिंदु देता है, तो पुत्र और स्त्री गृह बिंदु देता है, तो पुत्री की प्राप्ति होती है. यदि किसी की कुंडली में पुरुष और स्त्री गृह दोनों ही योग कारक होते हैं, तो उस व्यक्ति को पुत्र व पुत्री दोनों का सुख प्राप्त होता है.
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