किसी भी मन्त्र या सूत्र या रहस्य को ज्ञानेन्द्रियाँ इन पाँच चरणों में आत्मसात कर लेती है...योग, काल, भुत, शिव, शम्भू...स्वयं का अस्तित्व, दुनिया के अस्तित्व के साथ गहराई से सिद्ध हो जाये तो स्वयं को साधक की श्रेणी में शुमार मान लेना चाहिये.
संपूर्ण शरीर इस ब्रह्माण्ड का छोटा सा अंश है....मगर संपूर्ण ब्रह्माण्ड पंच-तत्व से निर्मित है...जैसे शरीर का निर्माण भी इन्ही तत्वों से सुसज्जित है....जीवन का अर्थ है समय और ऊर्जा का समन्वय....भले ही समय हमारे बस में नही किन्तु ऊर्जा को हम कभी भी, कहीं भी उत्पन्न तथा अनुभव कर सकते है.
अर्थात शिव से शम्भू की और अग्रसर होने की प्रक्रिया...व्यक्ति से व्यक्तित्व प्रधान होने की कला का विकास करना...तब प्रत्येक स्पंदन में ऊर्जा की तीव्रता...शरीर के प्रत्येक चक्र में, नस-नस में लहू की पुकार....हाथो-हाथ सोच कर....विचार करने की कला खुद की पैदाइश....मन ठीक एक निम्बू की तरह, कितना भी निचोड़ो रस कभी भी ख़त्म होने का नाम ना ले....सूखने के बाद भी पानी के छींटे मारने पर पुनः रस उत्पन्न हो जाये...जैसे संजीवनी बूटी....