दक्षिण भारतीय राज्य केरल की राजधानी तिरुवनंतपुरम में एक किले के भीतर पद्मनाथ भगवान का मंदिर है, इन्हें अनन्तशयन भी कहते हैं। यहां भगवान पद्मनाभ की शेषशय्या पर शयन किये हुए विशाल मूर्ति है। मूर्ति की लम्बाई 18 मीटर है। इतनी बड़ी शेषशायी मूर्ति देश विदेश के किसी और मंदिर में नहीं है। यहां भगवान की नाभि से निकले कमल पर ब्रम्हाजी विराजमान हैं जबकि भगवान का दाहिना हाथ शिवलिंग के ऊपर स्थित है। यहां उत्सव विग्रह के साथ श्रीदेवी, भूदेवी और नीलादेवी भगवान की इन तीन शक्तियों की मूर्तियां रहती हैं। यह मंदिर परंपरागत द्रविड वास्तुशिल्प शैली में निर्मित है। इसके सात तल वाले गोपुर विस्मयकारी दृश्य उपस्थित करते है। बताया जाता है कि मार्ताण्ड वर्मा से लेकर तिरुविंताकूर में जितने राजा हुए, सभी अपने को श्रीपद्मनाभ का दास मानते थे। यहां के तहखाने में एक बड़े खजाने का पता भी चला है जिसके बारे में अनुमान है कि यह पांच लाख करोड़ रुपए का है। यह खजाना पूर्व राज परिवार का है जिसने लुटेरों के भय से यहां खजाने को छिपा दिया था।
मंदिर के बारे में प्रचलित कथा इस प्रकार है- प्राचीन काल में दिवाकर नाम के एक विष्णु भक्त भगवान के दर्शनार्थ तपस्या कर रहे थे। भगवान विष्णु उनके यहां एक मनोहर बालक के रूप में पधारे और कुछ दिन उनके यहां रहे। एक दिन अचानक भगवान यह कहकर अन्तर्धान हो गये कि मुझे देखना हो तो अनन्तवन आइए। श्री दिवाकर जी को अब पता लगा कि बालक रूप में उनके यहां साक्षात् भगवान रहते थे। अब दिवाकर जी अनन्तवन की खोज में चले। एक घने वन में उन्हें शास्ता मंदिर और तिरुआयनपाडि (श्रीकृष्ण मंदिर) मिले। ये दोनों मंदिर पद्मनाभ मंदिर की परिक्रमा में हैं। वहीं एक कनकवृक्ष के कोटर में प्रवेश करते हुए एक बालक को दिवाकर मुनि ने देखा।
दौड़कर वे उस वृक्ष के पास पहुंचे, किंतु उसी समय वह वृक्ष गिर पड़ा। वह गिरा हुआ वृक्ष विशाल अनन्तशायी नारायण के विराट रूप में मुनि को दिखा। वर्तमान पद्मनाभ मंदिर उस श्रीविग्रह के नाभि स्थान पर है। बाद में दिवाकर मुनि ने एक मंदिर बनवाया और उसमें उसी गिरे हुए वृक्ष की लकड़ी से एक वैसी ही अनन्तशायी मूर्ति (जैसी मूर्ति के उन्हें वृक्ष में दर्शन हुए थे) बनवाकर स्थापित की। कालान्तर में वह मंदिर तथा काष्ठमूर्ति भी जीर्ण हो गयी। सन 1049 ई0 में वर्तमान विशाल मंदिर तथा भगवान का श्रीविग्रह प्रतिष्ठित हुआ। इस स्थान की अत्यन्त महत्ता है। देश भर में भगवान विष्णु के जितने मंदिर हैं उनमें यह सुविख्यात है।
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