भारत के कोने-कोने में प्राचीन मंदिर स्थित है, लेकिन भारत के हिमाचल प्रदेश राज्य में बहुत से ऐसे मंदिर भी है, जो अतिप्राचीन है, यहाँ मंदिरों की अधिकता व देवी-देवताओं से इसके सम्बन्ध के कारण भारत के इस स्थान को देव भूमि के नाम से भी जाना जाता है. हिमाचल प्रदेश के बड़सर क्षेत्र के गारली गांव में शीतला माता का एक ऐसा है मंदिर स्थित है जो सैकड़ो वर्ष पुराना है.
इस मंदिर के निर्माण के विषय में कहा जाता है, कि इसका निर्माण मुग़ल काल में हुआ था. आज यह मंदिर भक्तों की आस्था का विशेष केंद्र माना जाता है. इस मंदिर से सम्बंधित बहुत सी कथाएं है, जिसके अनुसार माता शीतला को माँ ज्वाला देवी की बहन माना जाता है.
इस मंदिर समिति के लोगों के अनुसार बादशाह अकबर के समय में एक बार महाराजा रणजीत सिंह कांगड़ा के ब्रजेश्वरी मंदिर के दर्शन करने आये थे, तभी उनके मन में इस मंदिर को लेकर तीन ओर प्रतिमाएं स्थापित करने की अभिलाषा जागी जिसके कारण इन प्रतिमाओं का निर्माण उन्होंने बिलासपुर के बछरेटू जिले में करवाया तथा इन प्रतिमाओं को कांगड़ा ले जाने के लिए पालकी बुलवाई गई.
इन प्रतिमाओं को वाहिना गाँव के रास्ते कांगड़ा लेकर जाते समय वाहिना गाँव में रूककर विश्राम करने के बाद जब इन प्रतिमाओं को पुनः उठाया गया तो यह प्रतिमाएं इतनी वजनदार हो गई कि वह किसी से भी नहीं उठी. तब महाराजा रणजीत सिंह ने इन प्रतिमाओं को उसी स्थान पर स्थापित कर मंदिर का निर्माण करवाया. जिसे आज शीतला माता मंदिर के नाम से जाना जाता है.
वर्ष में आने वाले प्रत्येक नवरात्रों पर यहाँ माता शीतला का विशेष पूजन किया जाता है. इस मंदिर के विषय में मान्यता है, कि जो भी भक्त माता शीतला के प्रसाद का सेवन करता है उसे गुप्त रोगों से मुक्ति मिलती है. हर वर्ष फाल्गुन माह की अष्टमी को यहाँ मेले का आयोजन किया जाता है जिसमे दूर-दूर से श्रद्धालु माता के दर्शन करने आते है.
माता सरस्वती के कारण ही महर्षि वाल्मीकि कर पाए रामायण की रचना
जानें बलराम प्रभु के अवतार श्री नित्यानंद जी की शक्ति के बारे में...
शनि पीड़ा से मुक्ति प्रदान करते है शनिदेव के यह प्रसिध्द मंदिर